जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
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11 दिसंबर 2022

भागलपुर : विपक्षी एकता के सुर जैसे-जैसे मंद पड़ रहे हैं वैसे-वैसे तेजस्वी यादव के सीएम बनने की मंजिल दूर होती जा रही है। खास कर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी के मिलने के बाद आशातीत सफलता नहीं मिलने से भी आरजेडी के भीतर नीतीश कुमार के वादे को लेकर काफी मायूसी है। सोनिया गांधी ने लालू और नीतीश को कितनी तवज्जो दी है इसपर बीजेपी ने भी प्रतिक्रिया दे दी है। बीजेपी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस अध्यक्ष (सोनिया) ने बिहार का अपमान किया है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार को बेचारा बताते हुए कहा कि सोनिया गांधी ने उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी तो वहीं बीजेपी आईटी सेल के राष्ट्रीय प्रमुख अमित मालवीय ने कांग्रेस अध्यक्ष पर बिहार का अपमान करने का आरोप लगाया। नीतीश-लालू यादव की सोनिया गांधी से मुलाकात को लेकर ट्वीट करते हुए अमित मालवीय ने कहा, ‘नीतीश कुमार और लालू प्रसाद, सोनिया गांधी से मिलते हैं और उस चर्चित मुलाकात की कोई तस्वीर नहीं है। कांग्रेस अध्यक्षा ने बिहार का इतना अपमान किया और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नीतीश कुमार को तिरस्कृत करके भेज दिया। बाहर निकलके लालू और नीतीश एक-दूसरे का हाथ पकड़के फोटो खिंचवाए थे।’

वजह भी कम नहीं : पिछले दिनों की मुहिम का आकलन करें तो विपक्षी एकता के नीतीश-लालू की जोड़ी प्रदेश में भले गुल खिला गई पर राज्य से बाहर इस जोड़ी को वो तजब्बो नहीं मिल रहा है, जिसकी इस जोड़ी को उम्मीद थी। राजनीतिक गलियारों में नीतीश कुमार को लेकर जो ओपिनियन है, वह यह कि नीतीश कुमार असफलता के साथ नहीं खड़े हो सकते हैं। और किसी भी मुहिम को बीच में भी नहीं छोड़ सकते। इस वजह से सेफेस्ट साइड की धार पकड़ते नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम तो चलाएंगे पर सीएम की कुर्सी के साथ।

लिटमस टेस्ट में फेल हुए थे नीतीश : राजनीति के लंबे खिलाड़ी रहे नीतीश कुमार को हरियाणा में आयोजित ओमप्रकाश चौटाला की सम्मान रैली से जो उम्मीद थी उस उम्मीद को लेकर भी घोर निराशा हाथ लगी थी। इस निराशा की वजह रही दक्षिणी राज्यों के मुख्यमंत्रियों में केसीआर, विजयन, एमके स्टालिन, उत्तरी राज्यों के केजरीवाल, अशोक गहलोत, ममता बनर्जी और यूपी से अखिलेश यादव, मायावती की ओर से इस मंच को साझा नहीं करना। वैसे भी नीतीश कुमार के लिए सम्मान रैली विपक्षी एकता का लिटमस टेस्ट था, जिसमें वह फेल कर गए। सो, मुहिम को लेकर नीतीश कुमार की गंभीरता सामने आई तो है पर वह इस मुहिम में पैदल हो जाएं यह उनकी राजनीति का हिस्सा है।

कहीं राजस्थान वाला न हाल हो जाए : और अगर लालू प्रसाद के दबाव में नीतीश कुमार कुर्सी का त्याग भी करते हैं, जिसकी गुंजाइश पांच प्रतिशत है, तो जेडीयू का हाल राजस्थान कांग्रेस जैसा भी हो सकता है। जहां यह शर्त भी रखी जा सकती है कि सीएम कोई होगा तो जेडीय के इसी 43 विधायकों में से। ऐसा नहीं होने पर पार्टी के भीतर विद्रोह भी हो सकता है। एक तो एनडीए से नाता टूटने के बाद जेडीयू के वैसे विधायक जो बीजेपी के वोट बैंक के सहारे विधायक बने हैं, पहले से ही खफा हैं। दूसरी ओर जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को गर राबड़ी देवी की टिप्पणी याद होगी तो वे भी चाणक्य के नीति के ही सहपाठी हैं। सो, इतनी आसानी से सीएम की कुर्सी तेजस्वी को नहीं मिलने के संकेत हैं।
ऐसा कोई सगा नहीं…

नीतीश कुमार की राजनीति का एक सच यह भी है कि एक मकसद पूरा होने के बाद दूध में मक्खी की तरह निकाल फेंकते हैं। कुर्मी चेतना रैली के सतीश कुमार हों या कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलने वाले पूर्व सांसद अरुण कुमार आज उन्हें कहा छोड़ दिया गया। और पीछे जाएं तो जॉर्ज, शरद, दिग्विजय यहां तक की लालू प्रसाद के साथ भी वही व्यवहार हुआ।

राजनीतिक गलियारों में तो बार-बार नीतीश कुमार के दुहराए जा रहे उस वक्तव्य के मायने निकाले जा रहे हैं, जिसमें वह कहते नजर आते हैं कि आगे तो इन नौजवानों को ही सत्ता संभालनी होगी। बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल कहते हैं _’समझ लीजिए वे सीएम की कुर्सी यही कहते कहते 2025 के विधान सभा चुनाव तक चले जायेंगे। अपने मकसद की कामयाबी तक तेजस्वी को यही झुनझुना बजा बजा कर आशान्वित रखेंगे।

क्या कह गए सुमो और पीके :
याद करें जब विपक्षी एकता के राग के साथ यह कहा जा रहा था कि नीतीश कुमार सीएम की कुर्सी छोड़ पीएम नरेंद्र मोदी को हराने निकलेंगे तभी वर्षों से उनके साथ राजनीति करने वाले सुशील मोदी ने कहा था कि ‘वो अंतिम कश तक सत्ता का मजा लेंगे। कुर्सी से उन्हें कोई अलग नहीं कर सकता है। इतना भर नही कभी नीतीश कुमार के रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने भी कहा था कि नीतीश कुमार को तो फेविकोल का एंबेसडर होना चाहिए था। बिना कुर्सी की राजनीति अब नीतीश कुमार के बस की बात नहीं है।

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