जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
11 अप्रैल 2023

सासाराम और नालंदा में रामनवमी के मौके पर भड़की हिंसा से एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी जिस तरह खफा हैं, उसका खामियाजा मुस्लिम वोटों के बड़े दावेदार मान रहे महागठबंधन को भुगतना पड़ सकता है। ओवैसी ने दंगों के लिए बिहार की महागठबंधन सरकार को जिम्मेवार ठहराया तो नीतीश ने उन्हें बीजेपी का एजेंट ठहरा दिया था। इस पर ओवैसी इस कदर भड़के कि मन की सारी भड़ास निकाल दी। उन्होंने कहा कि नीतीश तो खुद ही बीजेपी के साथ रहकर उसके सबसे बड़े एजेंट का काम करते रहे हैं। वे दूसरे को कैसे बीजेपी का एजेंट बता सकते हैं? ओवैसी ने इस दौरान नीतीश-तेजस्वी को खूब सुनाया था।

*ओवैसी के नीतीश पर लगाए आरोप में दम दिखता है!*

ओवैसी के तर्क में दम भी दिखता है। इसलिए कि नीतीश तो अपने शासन के अधिकतम काल में बीजेपी के साथ ही रहे हैं। हालांकि उन्होंने कई बार यह साबित भी किया है कि इससे उनके विचारों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। राम मंदिर का मुद्दा हो या नरेंद्र मोदी के पीएम फेस घोषित किये जाने पर बीजेपी का साथ छोड़ना, नीतीश मुसलमानों को यह एहसास कराते रहे हैं कि कम्युनलिज्म से वे समझौता नहीं करते। इसके बावजूद पहली बार बिहार में विधानसभा का चुनाव लड़ कर ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने एहसास करा दिया कि मुसलमानों का भरोसा नीतीश से कहीं अधिक उन पर है। मुसलमान वोटों के मामले में वे आरजेडी से भी बहुत कमजोर नहीं हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी जेडीयू का खाता नहीं खुला। लाख कोशिशों के बावजूद नीतीश की पार्टी जेडीयू से कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीते पाए थे, जबकि एआईएमआईएम के 5 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की, जो आरजेडी के 8 से तीन ही कम थे।

*ओवैसी का गुस्सा महंगा पड़ सकता है महागठबंधन को*

ओवैसी ने हाल में बिहार में हुई नालंदा और सासाराम हिंसा पर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की महागठबंधन सरकार की खिंचाई की थी। उन्होंने कहा था कि ‘लोग हिंसा की आग में जलते रहे और राज्य सरकार कान में तेल डाले बैठी हुई रही। खुफिया इनपुट के बावजूद पुलिस फेल रही। नीतीश पटना में आराम फरमाते रहे तो तेजस्वी ट्वीट-ट्वीट खेलते रहे। यहां तक कि अपने गृह जिले नालंदा भी नीतीश नहीं गए। इसका क्या अर्थ निकलता है। खुद बीजेपी की गोद में बैठते रहे हैं, नीतीश और मुझे बीजेपी का एजेंट बता रहे हैं। जाहिर है कि जब हिंसा होती है तो एक ही समुदाय पीड़ित या प्रभावित नहीं होता। दोनों समुदाय के लोग पीड़ित-प्रभावित होते हैं। यह जरूर संभव है कि कोई अधिक तो कोई कम प्रभावित हुआ हो। हिंसा से प्रभावित मुस्लिम कम्युनिटी के लोग जरूर यही बात कह रहे होंगे, जो ओवैसी कह रहे। खैर, इसका असली असर तो चुनाव के दौरान ही दिखेगा।

*बिहार की हर सीट पर उम्मीदवार देने की तैयारी में ओवैसी*

ओवैसी की एआईएमआईएम बिहार की सभी लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है। अगर ऐसा हुआ तो मुस्लिम वोटों का बंटवारा तय मानिए। ओवैसी का असर बिहार में पहली दफा 2020 के असेंबली इलेक्शन में दिखा था, जब उनके 5 उम्मीदवार जीत गए थे। फिर गोपालगंज विधानसभा के उपचुनाव में दिखा, जब वे आरजेडी के जीत जाने वाले उम्मीदवार की हार का कारण बने थे। अगर ओवैसी के उम्मीदवार ने वोट नहीं काटे होते तो गोपालगंज सीट भाजपा के हाथ से निकल कर आरजेडी की हो गई होती।

*सीमांचल के जिलों में दिखता है ओवैसी का सर्वाधिक असर*

गौरतलब हो कि सीमांचल के जिलों में ओवैसी का सर्वाधिक असर दिखता है, जहां से उनके 5 विधायक निर्वाचित हुए थे। यही वजह है कि महागठबंधन का सबसे अधिक फोकस सीमांचल पर ही है। हालांकि बीजेपी ने भी अपना ध्यान सीमांचल पर केंद्रित किया है, लेकिन इसकी दूसरी वजह है। बीजेपी को विश्वास है कि मुस्लिम वोटर इस क्षेत्र में निर्णायक हैं। अगर मुसलमान ध्रुवीकृत होते हैं तो हिन्दू वोटरों को भी बीजेपी एकजुट कर सकती है। यही वजह रही कि बिहार में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहली सभा सीमांचल में ही की थी। उसके बाद महागठबंधन ने रैली की। पीछे से ओवैसी भी कुछ ही दिन पहले सीमांचल के इलाके में घूम कर गए हैं।

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