नीतीश के दांव के आगे तेजस्वी का फंसा पेंच
जनपथ न्यूज़ डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
11 अप्रैल 2023
बिहार के सीएम नीतीश कुमार का काम उनके डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव कर रहे हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा कि नीतीश कुमार के लिए तेजस्वी यादव काम कर रहे हैं। महागठबंधन सरकार बनी तो नीतीश कुमार और आरजेडी के तमाम नेताओं ने यही बात कही थी कि विपक्षी एकता के लिए वे बिहार से बाहर जाएंगे। विपक्षी नेताओं से मिलेंगे। यहीं से यह बात भी निकली कि बिहार की गद्दी तेजस्वी को सौंप नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में जाएंगे। अपनी समाधान यात्रा के दौरान भी नीतीश ने कहा था कि बजट सत्र के बाद वे विपक्ष को एकजुट करने के काम मॆं लग जाएंगे। पर, सच यही है कि नीतीश शांति से बैठ गए हैं। सिर्फ तेजस्वी यादव में ही इसकी बेचैनी दिखती है। शायद तेजस्वी को इस बात का एहसास हो रहा हो कि नीतीश कुमार ने भले 2025 का असेंबली इलेक्शन उनके नेतृत्व में लड़ने की बात कही हो, पर लगता नहीं कि वे बिहार छोड़ने के मूड में हैं। इसलिए उनका काम खुद कर रहे। वे विपक्षी नेताओं से मिलते रहते हैं।
*एमके स्टालिन की बैठक में गए थे तेजस्वी यादव*
तेजस्वी यादव तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन के जन्मदिन पर विपक्षी नेताओं के जुटान में शामिल हुए थे। हाल ही सामाजिक न्याय के मुद्दे पर स्टालिन ने दिल्ली में जब विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाई तो तेजस्वी ने ही बिहार का प्रतिनिधित्व किया था। तेजस्वी झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन और आम आदमी पार्टी के नेता व दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से मिल चुके हैं। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से भी उनके अच्छे संबंध रहे हैं। इतना ही नहीं, बिहार में जब महागठबंधन की सरकार बनी थी तो उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे तेजस्वी से मिलने पटना पहुंचे थे। यानी विपक्षी नेताओं से तेजस्वी की भेंट-मुलाकात होती रहती है। नीतीश कुमार को सोनिया गांधी से मिलने के लिए लालू यादव का सहारा लेना पड़ा था, लेकिन तेजस्वी उनके आवास पर मुलाकात कर चुके हैं।
*तेजस्वी को विपक्षी एकता की इतनी हड़बड़ी क्यों है*
दरअसल नीतीश कुमार के पलटी मार स्वाभाव से सभी परिचित हैं। ऐसा नहीं कि आरजेडी को इसका एहसास नहीं होगा। नीतीश राष्ट्रीय राजनीति में जाने की बात करते रहे, लेकिन जब जरूरत है तो वे शिथिल पड़ गए हैं। तेजस्वी को लगता है कि 2025 का सपना दिखा कर नीतीश कहीं पलट न जाएं। इसलिए वे नीतीश कुमार के लिए ग्राउंड वर्क करने में जुटे हैं, ताकि वे बिहार से बाहर निकल सकें। शायद यही वजह है कि नीतीश कुमार से जब विपक्षी एकता के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि काम हो रहा है। जब परिणाम आएगा तो सबको पता चल जाएगा।
*विपक्ष की ओर से पीएम फेस बनने वाले थे नीतीश*
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके बिहार राज्य प्रमुख जगदानंद सिंह बार-बार यह कहते रहे कि नीतीश कुमार विपक्ष के पीएम फेस होंगे। इधर नीतीश कुमार बार-बार इस तरह की किसी बात से इनकार करते रहे। एक बार ऐसा लगने लगा कि बिहार में तेजस्वी यादव के लिए नीतीश अपनी कुर्सी आसानी से छोड़ने वाले नहीं हैं। आरजेडी ने अपने हल्ला बोल ब्रिगेड को सामने कर दिया। नीतीश के खिलाफ बयानबाजी शुरू हो गयी। आरजेडी के कुछ विधायक नीतीश को नकारने लगे और तेजस्वी की ताजपोशी की तारीख भी मुकर्रर करने लगे। लेकिन सीबीआई और ईडी के एक झटके में सब सीधे हो गए। यहां तक कि तेजस्वी यादव भी उनका गुणगान करने लगे। तेजस्वी ने सफाई में यह तक कह दिया कि उन्हें सीएम नहीं बनना। वे नीतीश जी के नेतृत्व में अपनी इसी भूमिका से संतुष्ट हैं।
*नीतीश ने बीजेपी नेता के घर जाकर सस्पेंस बढ़ाया*
दरअसल नीतीश कुमार चैती छठ के मौके पर अपने कई मंत्रियों के साथ बीजेपी एमएलसी और राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय मयूख के घर प्रसाद खाने गए थे। उनके बाडी लैंग्वेज से साफ लग रहा था कि बिहार में उन्हें कोई अंडर एस्टीमेट करने की भूल न करे। उनके पास विकल्पों की कमी नहीं है। उसके बाद आरजेडी में सन्नाटा पसर गया था। नीतीश अगर सच में झटका दे दें तो न सिर्फ आसन्न लोकसभा चुनाव में वोटों का समीकरण गड़बड़ हो जाएगा, बल्कि सत्ता का मिल रहा तात्कालिक सुख भी छिन जाएगा। इधर सीबीआई-ईडी ने तेजस्वी समेत लालू प्रसाद यादव के परिवार पर शिकंजा भी कसना शुरू कर दिया था। तेजस्वी को ऐसे मौके पर नीतीश के नैतिक समर्थन की जरूरत थी। नीतीश के एक झटके से आरजेडी की बेचैन आत्माएं शांत हो गईं। उसके बाद से न सुधाकर सिंह की जुबान खुली और न ताजपोशी की तारीख तय करने वाले विजय मंडल की। नीतीश की आपत्ति के बावजूद रामचरित मानस के खिलाफ लगातार बोल रहे शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की न सिर्फ बोलती बंद हो गई, बल्कि माफी के अंदाज में कई लोगों की मौजूदगी में उन्होंने नीतीश कुमार के पैर भी छूए।