केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान ने किया जननायक चन्द्रशेखर सिंह स्मृति आयोजन–
बिहार में वामपन्थ को पेश करना है वैकल्पिक एजेंडा……..
रिपोर्ट: राकेश कुमार
जनपथ न्यूज
जनवरी 9, 2022
पटना: केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान, पटना की ओर से जननायक कॉमरेड चन्द्रशेखर सिंह की स्मृति में ‘बिहार में सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य और वामपंथ’ विषय पर विमर्श का आयोजन किया गया।
ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव विश्वजीत कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि “बचपन में सुना करता था कि अरवल में चन्द्रशेखर सिंह की सभा हुआ करती थी तब भारी भीड़ जमा हुआ करती थी। सिचाई मंत्री रहते हुए नलकूप लगाने का कार्य किया। यहां के सत्ता व शासकों से जो साहसिक संघर्ष किया वह प्रेरणादायी है । ऐसे साथियों को याद करना चाहिए जो निराशा के दौर में भी हमें समाज बदलने की प्रेरणा देते हैं। पूंजीवादी मॉडल ने राज्यों के बीच भी गैर-बराबरी कायम की। गरीबी, बेरोजगारी की दर काफी ऊंची है। दूसरे प्रदेशों में लोग पलायन को मजबूर हैं। ”
चर्चित बंग्ला कवि व ‘बिहार हेराल्ड’ के संपादक बिद्युतपाल ने संबोधन में कहा ” बिहार सरकार हर वर्ष आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत करती है।विधानसभा में थोड़ी-बहुत आलोचना होती होगी। लेकिन उस आर्थिक सर्वेक्षण को सैद्धान्तिक चुनौती देते हुए उसकी आलोचना प्रस्तुत कर पाते हैं ? क्या हम सरकार के बरक्स वैकल्पिक आंकड़े प्रस्तुत कर पाते हैं? यदि आप स्थानीय स्तर पर हैं तो क्या उसकी चुनौती कर पाते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े से अलग कर पाते हैं? यदि यह नहीं करेंगे तो हमें बुर्जुआ मीडिया और एन. जी.ओ पर ही भरोसा करना पड़ेगा। वामपंथ अभी भी बहुत भरोसे का साथी है। सिर्फ विधानसभा की ताकत के आधार पर वामपन्थ का मूल्यांकन नहीं कर पाएंगे। अभी भी ईमानदार होने उम्मीद वामपंथ से ही करते हैं। जनता के भरोसे के आईने में ही आपकीं ताकत है। चुनावी राजनीति ही एकमात्र मानक नहीं है वामपंथ के सफ़लता का। सरकारी योजनाएं भले वह नाकाफी है यदि उसके पीछे लोग दौड़ रहे हैं तो उसमें हस्तक्षेप करना । आपको अपने राज्य के लिए एक व्हाइट पेपर प्रस्तुत करना। यदि उनकी योजना गलत है तो आपकीं योजना क्या है इसको सामने लाना होगा।” बिद्युतपाल ने आगे बताया “1991 के बाद नवउदारवाद के उन्मत्त व आदिम पूंजीवाद का दौर शुरू हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूँजी पर जो नियंत्रण था वह खत्म हो गया। अब परिपाटी शुरू हुई कि बजट पेश होने के पहले आई.एम.एफ ऑफिस को दिखाया जाता था। बिजनेस मैनेजमेंट के ट्रेनिंग में यह सिखाया जाता है कि आप अपने अंदर की पशुता को कैसे जगायेंगे। जाति व धर्म से उबरकर जो देश थोड़ा आजाद हुआ उस दरार को दुबारा बढ़ाएगा। जितने दंगे हुए उनकी जड़ में देखेंगे कि दंगों में जिनकी घर या दुकान जलाए जाते हैं उसे कैसे अपने नाम और करा ले। हमारी वैश्विक पहचान थी कि हम मज़दूर हूं लेकिन अब वो पहचान कमजोर हुआ है। ऐसी ही स्थिति में 1991 के बाद आइडेंटिटी पॉलिटिक्स आया जिसका मकसद पुरानी एकता को तोड़ना था। 25 नवम्बर 1992 को वैश्वीकरण के खिलाफ सबसे बड़ा प्रदर्शन हुआ और सात दिनों के अंदर बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया गया । आजादी के वक्त जब मज़दूर वर्ग खड़ा हो रहा था तब दंगे करवाये गए। आज जितनी भी बुर्जुआ पार्टी है सब एक नायक तंत्र पर आधारित है। तुर्की, ब्राजील सब जगह एक नेता है जो सेना व मध्यवर्ग को जोड़ कर रखता है। अब तमाम वामपन्थी पार्टियों में युवाओं को आकर्षित करने के लिए खेल का इस्तेमाल करना चाहिए।”
चर्चित चिकित्सक डॉ सत्यजीत सिंह ने दुनिया के कई देशों के अपने अनुभवों को शेयर करते हुए कहा कहा ” मैं चन्द्रशेखर जी से बचपन से परिचित रहा हूं। वे दिलेर नेता थे। ये लोगों के संघर्ष में आगे रहते थे लोग पीछे रहते थे। 1967 में कम्युनिस्ट पार्टी पहले आगे रहा करते था। लेकिन अब हम दूसरों के पीछे रहा करते हैं। मैंने इनका चरित्र देखा है। इनके पिता जी श्री बाबू के समक्ष थे। उन्हें कांग्रेस में सिर्फ इस कारण आगे नहीं बढ़ने दिया क्योंकि उनके दोनों बेटे कम्युनिस्ट हो गए थे। जो समाज के अंतिम व्यक्ति के बारे में सोचता है वह मेरे ख्याल से वामपन्थी है। मैं सबसे अधिक स्वामी सहजानन्द सरस्वती से प्रभावित रहा हूं जिनको उनके विचारों के कारण उनका जाति, धर्म सब उनसे अलग हो गए थे। जब हम कोई दर्शन आज बना रहे हैं तो हमें आज की समस्याओं का ध्यान रखना होगा। लोगों को शिक्षित करने पर जोर हुआ करता था। यूरोप में वामपन्थ फिर कैंपस में लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि लोगों का पूंजीवाद से मोहभंग हो चुका है।”
बिहार महिला समाज की नेत्री शरद ने अपने संबोधन में कहा ” बिहार में वामपक्ष ने वर्ग संघर्ष के साथ-साथ जाति संघर्ष की जड़ में उतरकर काम नहीं किया। एक नई रणनीति के तहत वर्ग संघर्ष में उतरने के जरूरत है। जहां खाने को रोटी नहीं है वहां चंदा करके लोग मंदिर बनवाया रहे हैं। जाति के कारण दलित-महादलित के सम्मान की लड़ाई को शायद ठीक से नहीं लड़ी गई। वर्ग संघर्ष के साथ उसके सम्मान की लड़ाई को नहीं जोड़ सके। चीन से मैंने एक ही चीज सीखी की चीनी विशेषताओं वालो समाजवाद। जैसे चीन के अनुकूल उसे ढ़ाला वैसा ही हमको करना चाहिए। जब भी लोगों के अधिकारों के हनन की बात आती है तो लोगों को कम्युनिस्ट पार्टी की याद आती है। लेकिन वोट के वक्त जाति के आधार पर वोट गिराते हैं। “
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की हाजीपुर जिला ईकाई के सचिव अमृत गिरि के अनुसार ” चन्द्रशेखर सिंह कम्युनिस्ट पार्टी के जन-जन में हैं। मेरे जैसे लोग यदि कम्युनिस्ट पार्टी में हैं तो चन्द्रशेखर सिंह के कारण हैं। लालू प्रसाद व नीतीश कुमार के आने के बाद हर जाति-उपजाति के लोगों की गोलबंदी होने लगी। 1990 के बाद वामपन्थियों आई जमात हाथ से निकल गया। लोहिया के राजनीति से निकलकर एक भी ऐसी ताकत नहीं है जो कॉरपोरेट को चुनौती दे रहा है। आज कम्युनिस्टों को छोड़ कोई कॉरपोरेट के खिलाफ बोलने वाला नहीं है।”
शिक्षाविद सर्वेश कुमार अनुसार ” आज डाटा को मैन्युपुलेट किया जा रहा है। वामपन्थ के बिना इंटेलेक्चुअल स्पेस की कल्पना नहीं की जा सकती। वामपन्थ अपनी ताकत को नहीं पहचान पाया। वामपन्थ का भविष्य विपक्ष की राजनीति है। गिनी कोफीशिएंट का शून्य से एक की ओर बढ़ना इस बात का प्रतीक है कि असमानता बढ़ रही है। बीपीएल की संख्या डेढ़ गुणा बढ़ गई है।”
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ट नेता जब्बार आलम ने कहा ” यदि आपके संविधान पर खतरा है तो क्या देश जे लोग महसूस कर रहे हैं। उस खतरे , से निपटने के लिए क्या तैयारी है ? सड़क पर जुलूस, प्रदर्शन होने से वामपन्थ का मूल्यांकन नहीं कर सकते। आज दुनिया भर में वामपन्थ उभार पर है चिली, होंडुरास, बोलीविया आदि में वामपन्थ जीत कर आ गया। पहले की तुलना में देखें तो यहां भी अब ताकत में इजाफा हुआ है। जनता को ध्यान में रखकर चलें तो हमारी शक्ति बढ़ेगी।”
प्राथमिक शिक्षक संघ के महासचिव भोला पासवान, इसक्फ के प्रांत महासचिव रवींद्रनाथ राय , संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर ने भी संबोधित किया।
सभा का संचालन रँगकर्मी जयप्रकाश ने किया जबकि आगत अतिथियों का स्वागत केदारदास श्रम समाज अध्ययन संस्थान के अजय कुमार ने किया।
सभा में बड़ी संख्या शहर के बुद्धीजीवी , सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे। अशोक कुमार सिन्हा, सुमन्त शरण, विकास, गजनफर नवाब, हरदेव ठाकुर, जीतेन्द्र कुमार, ललन कुमार, गोपाल कृष्ण, राकेश कुमुद, अनिल कुमार राय, अक्षय कुमार , सुनील सिंह, आशीष रंजन, गोपाल शर्मा, रवीन्द्र नाथ राय, मोहन प्रसाद, कपिलेश्वर राम तृप्ति सिंह, दिव्या शेखर , अमरनाथ, राजकुमार, मंगल पासवान , मीर सैफ अली, पुष्पेंद्र शुक्ला , रामलला सिंह , आलोक कुमार , राकेश कुमार , सिकंदर कुमार, शब्बीर अहमद, धनन्जय कुमार आदि मौजूद थे।