जनपथ न्यूज़ पटना. चैत छठ महापर्व के दूसरे दिन खरना पूजा के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो गया। महाप्रसाद ग्रहण करने के बाद श्रद्धालु दो दिन तक भगवान को नमन करेंगे। कोरोनावायरस से फैल रही महामारी को रोकने के लिए इस वर्ष श्रद्धालु सीमित साधनों में घर में ही पूजा कर रहे है। सोमवार को चैत्र शुक्ल षष्ठी को सर्वार्थ सिद्धि योग में अस्ताचगामी सूर्य देवता को पहला अर्घ्य दिया जाएगा । संध्या अर्घ्य का शुभ समय संध्या 05:58 बजे से 06:07 बजे तक है।
इस वर्ष छठ महापर्व ग्रह गोचरों के शुभ संयोग में मनाया जा रहा है। व्रती पूरे विधि विधान के साथ पारिवारिक सुख समृद्धि और मनोवांछित फल के लिए छठ पर्व कर रही हैं। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को करने से रोग, भय आदि से मुक्ति मिलती है । छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चल रही है। सभी देवताओं में सूर्य ही ऐसे देवता है, जिन्हें प्रत्यक्ष रुप से देख सकते हैं। सूर्य की शक्ति का स्रोत उनकी पत्नी उषा और प्रत्युषा हैं ।
छठ में सूर्य के साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। ज्योतिषों के अनुसार शाम को भगवान भास्कर को जल से अर्घ्य देने से मानसिक शांति और जीवन में उन्नति होती है । लाल चंदन, फूल के साथ अर्घ्य से यश की प्राप्ति होती है । कलयुग के प्रत्यक्ष देवता सूर्य को जल में गुड़ मिलाकर अर्घ्य देने से पुत्र और सौभाग्य का वरदान मिलता है । वहीं प्रातःकाल में जल में रक्त चंदन, लाल फूल, इत्र के साथ ताम्रपात्र में सूर्य को अर्घ्य देने से आयु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती है।
अथर्ववेद में यह जिक्र है कि षष्ठी देवी भगवान सूर्य की मानस बहन हैं । प्रकृति के षष्टम अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं। उन्हें बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है। बालक के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मइया की पूजा की जाती है। ताकि बच्चे दीर्घायु और निरोग रहें। एक अन्य आख्यान के अनुसार कार्तिकेय की शक्ति हैं षष्ठी देवी। सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्यता, सौभाग्य व संतान के लिए किया जाता है। स्कंद पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है।
सुरक्षा की अनदेखी, पड़ सकती है भारी
चार दिवसीय छठ के दूसरे दिन रविवार को व्रतियों ने खरना पूजा कर 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू किया। इस बार व्रती घर पर ही डूबते और उगते सूर्य को अर्ध्य देकर सुख-समृद्धि की कामना करेंगे।