जानें कब से हुई शुरुआत…?

जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
5 अप्रैल 2023

भागलपुर : रमजान के मुकद्दस महीने में हर मर्द,औरत और बालिग पर रोजे फर्ज हैं, लेकिन कुछ लोगों को रोजा न रखने की छूट भी मिली है। इनको रोजा न रखने पर गुनहगार नहीं माना जाएगा। कुरान और हदीस के मुताबिक हर बालिग मर्द और औरत पर रमजान का रोजा रखना फर्ज है। लेकिन जो लोग बीमार हैं, बहुत वृद्ध (बुजुर्ग) हैं, शरीर में रोजा रखने की क्षमता नहीं है,मानसिक रूप से बीमार हैं, बहुत छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को रोजा न रखने की छूट दी गई है।
उक्त बातें खानकाह-ए-पीड़ शाह दमड़िया के सज्जादानशीं सैयद शाह फकरे आलम हसन ने एक भेंट वार्ता के दौरान कही। उन्होंने कहा कि कोई बीमार व्यक्ति अगर ठीक महसूस करें, तो वह पहली फुर्सत में रोजा रख सकते हैं, जो व्यक्ति हमेशा बीमार रहता है,उसे 30 दिन रोजे के बदले 60 गरीबों को दोनों वक्त का खाना खिलाने, या 60 गरीबों को पौने दो किलो गेहूं या इसके बराबर बाजार की कीमत पर रकम अदा करने का हुक्म है। उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति यात्रा में है, और उसे रोजा रखने में परेशानी हो रही है, तो ऐसे में सफर खत्म होते ही रोजा रखने की बात कही गई है, लेकिन वह सफर खत्म होने के बाद रोजा नहीं रखता, तो वह गुनहगार होगा।

*कौन से लोग रोज नहीं रख सकते हैं*

सैयद हसन ने कहा कि ऐसे लोग,जो बालिग और शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हुए भी रोजे नहीं रखते, ऐसे लोग गुनहगार हैं और इन्हें जहन्नुम नसीब होती है। इस्लामिक कैलेंडर के नौंवे महीने रमजान में रोजा रखने की शुरुआत दूसरी हिजरी में हुई है। उन्होंनै बताया कि कुरान की दूसरी आयत सूरह अल बकरा में कहा गया है कि रोजा तुम पर उसी तरह फर्ज है, जैसे पहले की उम्मत पर फर्ज था। कहा जाता है कि पैगंबर साहब के हिजरत कर मदीना पहुंचने के एक साल बाद मुसलमानों को रोजा रखने का हुक्म मिला। इसके बाद रोजा रखने की शुरुआत हुई।

*उम्मत पर 50 दिन के रोजे होते फर्ज*

सैयद हसन ने बताया कि रमजान में अल्लाह ने 50 दिन के रोजे उम्मत पर फर्ज किए थे। पैगंबर मुहम्मद साहब को जब अल्लाह ने अपना नबी बनाया, तो अल्लाह ने उनकी उम्मत पर 50 दिन का रोजा रखने का हुक्म दिया था, लेकिन पैगंबर मुहम्मद साहब ने अल्लाह से गुजारिश की कि मेरी उम्मत 50 दिनों के फर्ज रोजे रखने में परेशानी आएगी। इसके बाद अल्लाह ने पैगबंर की गुजारिश कबूल कर रमजान में 30 दिन के रोजे उम्मत पर फर्ज किए।मगर, नाफिल रोजे कभी भी रख सकते हैं। ईद के बाद छह रोजे, मुहर्रम, बकरीद, शाबान, रजब आदि महीने में भी रख सकते हैं। इसके साथ ही पीर (सोमवार) और जुमेरत (गुरुवार) का रोजा रखने का काफी सबाब है।रोजे की सेहरी भी बहुत जरूरी है।

*अल्लाह की इबादत का माह है रमजान*

सैयद हसन ने माह-ए-रमजान को अल्लाह की इबादत का माह बताया और कहा कि एक माह तक चलने वाले माह-ए-रमजान पर्व को इस्लाम धर्म में काफी अहमियत दी गई है। उन्होंने कहा कि इस माह में मुस्लिम भाई तमाम बुराईयों को त्याग कर खुद को अल्लाह के आगे नतमस्तक कर इबादत में लग जाते है। रमजान शुरू होने के साथ ही मुस्लिम बहुल इलाके में चहल-पहल बढ़ जाती है। उन्होंने पवित्र कुरानशरीफ की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें भी उल्लिखित है कि रोजा अल्लाह के द्वारा निर्धारित फर्ज इबादतों में एक है। इस्लाम धर्म में रोजा के मुतल्लिक बताया गया है कि यह मुस्लिमों के धार्मिक, मानसिक,शारीरिक, आध्यात्मिक तथा स्वास्थ्य संबंधी लाभों के प्रतिफल में अहम भागीदार है। रसुल अकरम सलल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फरमाया है कि बस्तुतः इच्छाओं पर नियंत्रण पाने के लिए रमजान का पर्व होता है। जब रमजान की पहली रात आती है तो शैतान कैद कर लिए जाते हैं और जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं। जबकि जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं। उन्होंने बताया कि रमजान के महीने में बंदा सच्चे दिल से अल्लाह-ताला से जो दुआ मांगता हैं, उसे अल्लाह-ताला पूरा करते हैं।

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