जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
27 फरवरी 2023

भागलपुर : लोकसभा चुनाव अभी दूर है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने इसको लेकर प्री-एक्टिव मोड में आ चुकी है। बिहार के दौरे पर पहुंचे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बिहार भाजपा नेताओं से आगामी लोकसभा चुनाव के संदर्भ में बातें की। यहां पर दो रैलियों को संबोधित करने के बाद अमित शाह ने शनिवार रात बिहार बीजेपी कोर कमेटी की बैठक ली। इस दौरान उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से फीडबैक लिया। इसके साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव में 40 में से 35 लोकसभा सीटें जीतने के लिए फॉर्मूला भी बताया। इस दौरान अमित शाह ने कार्यकर्ताओं से कहा कि वह जद-यू से दोबारा गठबंधन का ख्याल भी अपने मन में न ले आएं। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया कि नीतीश कुमार के लिए भाजपा के दरवाजे पूरी तरह से बंद हो चुके हैं।

*गठबंधन के लिए कही यह बात*

अमित शाह ने इस दौरान पार्टी नेताओं से कहा कि किसी भी छोटे दल से गठबंधन करने से पहले खास सावधानी बरतें। मामले की जानकारी रखने वाले एक पार्टी नेता ने बताया कि यह स्पष्ट कर दिया गया है कि पार्टी गठबंधन के लिए तैयार है। लेकिन इसको लेकर अन्य दलों द्वारा कोई पूर्व शर्त नहीं रखी जाएगी। इसके अलावा किसी तरह का कमिटमेंट भी नहीं होगा। इस नेता के मुताबिक बिहार में पार्टी नेताओं से यह भी कहा गया है कि इस साल के अंत तक कोई गठबंधन न करें। एक वरिष्ठ पार्टी नेता ने बताया कि एक आम राय यह बनाने की कोशिश की गई है कि पार्टी खुद से चुनावी मैदान में उतरेगी।

*अमित शाह का मंत्र*

इस मौके पर अमित शाह ने पार्टी नेताओं से महागठबंधन और उनकी राजनीति के खिलाफ जनता के बीच जाकर कैंपेन चलाने के लिए भी कहा। रैलियों के दौरान नीतीश कुमार पर हमला बोलने वाले श्री शाह ने मीटिंग में भी बिहार के सीएम को लेकर खास सुझाव दिए। श्री शाह ने बिहार भाजपा के नेताओं को निर्देश दिया कि जब वह लोगों के बीच जाएं तो नीतीश के अवसरवाद और गठबंधन की आदत का जिक्र जरूर करें। इसके अलावा लोगों को जंगल राज, आरजेडी की जाति आधारित राजनीति की याद दिलाने के साथ प्रदेश में डबल इंजन सरकार का महत्व भी बताएं। इसके लिए शाह ने कहा कि पार्टी सभी वर्गों से सरकार द्वारा ओबीसी, ईबीसी, ईडब्लूएस और पसमांदा मुस्लिमों के लिए किए गए कामों को गिनाए। पार्टी नेताओं से समाज के सभी वर्गों, खासतौर पर ईबीसी पर तरजीह देने के लिए कहा गया है। इसके साथ ही साथ सभी बूथों पर जीत के लिए जोर देने की बात कही गई है।

*इनसे भी बढ़ रहा है संपर्क*

बिहार में कई अन्य छोटे दल भाजपा के संपर्क में बताए जा रहे हैं। इनमें सबसे प्रमुख नाम जदयू के पूर्व एमएलसी उपेंद्र कुशवाहा का है। जदयू छोड़ने के बाद अपनी पार्टी बनाने वाले कुशवाहा अचानक से प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ में जुट गए हैं। यह अफवाह भी उड़ रही है कि विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश सहनी भी एनडीए का हिस्सा हो चुके हैं। इस अफवाह को जोर तब मिला जब केंद्र सरकार ने अचानक से सहनी को वाई कैटेगरी की सुरक्षा दे डाली। सहनी पहले भी एनडीए का हिस्सा थे, लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने के फैसले के बाद बाहर हो गए थे। वहीं, कुशवाहा साल 2014 की मोदी सरकार का हिस्सा थे।

*आरसीपी और चिराग पर भी नजर*

इसके अलावा भाजपा नेताओं को लगता है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह भी पार्टी ज्वॉइन कर सकते हैं। सिंह कुर्मी जाति के हैं और भाजपा के एक वर्ग को लगता है कि उनके पार्टी में आने के बाद कुर्मी वोटरों को अपनी तरफ किया जा सकता है। इसी तरह एलजेपी नेता चिराग पासवान, जिन्हें जेड कैटेगरी की सुरक्षा मिली हुई है, बिहार के 7.5 फीसदी दलित समुदाय पर पकड़ रखते हैं। भाजपा चिराग पासवान को मोहरा बनाकर पासवान वोटर्स को अपने तरफ करने की फिराक में है। गौरतलब है कि बिहार में तीन विधानसभा उपचुनावों में भाजपा ने चिराग को स्टार कैंपेनर बनाया था और उसे इसका फायदा भी मिला था। यह उपचुनाव कुढ़नी, गोपालगंज और मोकामा में हुए थे।

*क्या कहते हैं एक्सपर्ट..?*

हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञ अमित शाह की इन बातों को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं और इसे महज राजनीतिक दांव बताते हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट रिटायर्ड प्रोफेसर एनके चौधरी कहते हैं कि, ‘राजनीति, समझौतों का ही दूसरा नाम है और कोई आदर्श नहीं बचा है। इन बयानों के असल मायने कुछ और ही हैं। भाजपा किसी तरह का कोई चांस नहीं लेगी और अगर मौका मिला तो फिर से नीतीश के साथ जाने से पीछे नहीं हटेगी।’ वहीं, ए एन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के डीएम दिवाकर कहते हैं कि इस तरह के बयानों को तवज्जो दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यहां तक कि पूर्व में नीतीश कुमार ने भी कहा था कि वह भाजपा के साथ नहीं जाएंगे, लेकिन आखिर गए। अब भाजपा और नीतीश एक सटीक मौके की तलाश में हैं, जहां दोनों का मिलन हो सके। राजनीति की भाषा अलग होती है। उनका यह भी मानना है कि राजनीति में कभी दरवाजे बंद नहीं होते। एम दिवाकर ने कहा कि बिहार भाजपा में अंदरूनी संघर्ष काफी ज्यादा है। इसीलिए भाजपा एक नेता तक प्रोजेक्ट नहीं कर सकी और संख्याबल में कमजोर होने के बावजूद नीतीश सीएम बने। उन्होंने कहा कि भाजपा को पता चला चुका है कि बिहार का रास्ता आसान नहीं है।

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