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दही में गूड़ की तरह घुल कर हर चर्चा मिठास छोड़ गई

जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम‌ सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
15 जनवरी 2023

भागलपुर : मकर संक्रांति का त्‍योहार हमारे रग-रग में रचा- बसा है। बचपन से मकर संक्रांति के विशेष महत्‍व को देखता आया हूं। मकर संक्रांति के पहले से ही ढेंकी का कूटा हुआ चूड़ा और गुड़। गमछी में घोंघी बनाकर चूड़ा भरकर गर्दन में लपेट शाम को घर से निकल लेते थे। नहर पर पहुंचते-पहुंचते घोंघी खाली हो जाता था। यह रोज का काम रहता था,जब तक चूड़ा घर में उपलब्‍ध है। इसी मौसम में धान कटने के बाद आंगन में गौरेया के स्‍वागत की तैयारी। मां या चाची धान की बाली को बाल के तरह गूंथ कर ओरी के बांस में टांग देती थी। दिन भर गौरेया का आगमन लगा रहता था। अब घरों में न आंगन है, न ओरी। इसलिए धान गूंथने की परंपरा भी समाप्‍त हो गई है।

बांका जिले के अमरपुर प्रखंड के पैतृक गांव के पास झरना पहाड़ और बौंसी के मंदार पर्वत पर मकर संक्रांति का मेला लगता है। सुबह से देर शाम तक आसपास के गांव के लोग मेला घुमने के आते हैं। इस मेले का सबसे आकर्षक आईटम है जलेबी और आलू-गोभी की पकौड़ी। घर में दही, चूड़ा, गुड़, दूध खाकर मन भर जाता है, वैसे में पकौड़ी ही मेला में सबसे पसंदीदा खाद्य होता है। अब मेले तक जाने के लिए पक्‍की सड़क बन गई है। पहले खेत-खेत से होकर मेला जाने का रास्‍ता लग जाता था। अब गांव छुटने के बाद भी मकर संक्रांति पर गांव की याद आ ही जाती है।

इसी माहौल में शनिवार को भागलपुर स्थित बबरगंज थाना परिसर में पुलिस वालों की ओर से संक्रांति के मौके पर दही-चूड़ा का भोज आयोजित किया गया था। थाना परिसर में गांव का माहौल भले नहीं हो, लेकिन गांव की याद ताजा हो गयी थी। पत्तल के आकार का प्‍लेट, उसमें चूड़ा-दही और गूड़। गुड़ चीनी का ही एक रूप है। शानदार आलू-गोभी की सब्‍जी। ऊपर से तिलकूट, जिसे गजक भी कहा जाता है। इस भोज अलग-अलग क्षेत्रों के सैकड़ों लोग शामिल हुए।

थानाध्यक्ष प्रमोद साह के साथ
राकेश रंजन केशरी, विनय गुप्ता, दीपक शर्मा, मनोज कुमार, किशोरी साह, गोविंद अग्रवाल, प्रफूल सिंह, संजय हरि, कपी साह समेत शांति समिति से जुड़े अन्‍य कई लोग भी शामिल थे। कुछ तो जिले के अलग-अलग इलाकों से जुड़े हुए थे। इसलिए सबके पास मकर संक्रांति और स्‍वाद को लेकर अपना-अपना अनुभव था।
राजद और जदयू की ओर से 14 जनवरी को होने वाले चूड़ा-दही का भोज स्‍थगित हो जाने के कारण चूड़ा-दही के नाम पर संभावित चर्चा पर भी विराम लग गया था। वैसे में हमारे लिए थानाध्यक्ष प्रमोद साह के सौजन्‍य से आयोजित चूड़ा-दही पर साथियों का मिलन महत्‍वपूर्ण हो गया था। इस मौके पर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा भी हुई। लेकिन हर चर्चा दही में गूड़ की तरह घुल कर मिठास छोड़ गई।

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