जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
1 दिसम्बर 2022

भागलपुर : बिहार में नगर निकाय चुनाव पर एक बार फिर से बड़ा ग्रहण लग गया है। नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण के लिए रिपोर्ट तैयार करने वाले बिहार राज्य अति पिछड़ा वर्ग आयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। ऐसे में नगर निकाय चुनाव में फिर पेंच फंस गया है।

विदित हो कि पिछले चार अक्टूबर को पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद बिहार में नगर निकाय चुनाव को रोक दिया गया था। पटना हाईकोर्ट ने कहा था कि बिहार सरकार ने निकाय चुनाव में पिछड़ों को आऱक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन नहीं किया है। कोर्ट ने पिछड़ों के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य सीट करार देकर चुनाव कराने को कहा था। जिसके बाद सरकार ने पूरी चुनावी प्रक्रिया रद्द कर दी गई थी।

बाद में बिहार सरकार फिर से हाईकोर्ट पहुंची औऱ कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानने को तैयार है। बिहार में नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों को आऱक्षण देने के रिसर्च कराया जायेगा। बिहार के अति पिछड़ा वर्ग आयोग को इसका जिम्मा सौंपा गया है औऱ सरकार ने कहा कि इस आय़ोग की रिपोर्ट के आधार पर चुनाव में पिछड़ों के लिए आरक्षण तय किया जायेगा। पटना हाईकोर्ट ने इसकी मंजूरी दे दी थी।

सुप्रीम कोर्ट में फंस गया पेंच : हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत औऱ जस्टिस जे. के. माहेश्वरी की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान बड़ा आदेश दे डाला। दरअसल याचिका दायर करने वाले सुनील कुमार की ओर बहस करने वाली वरीय अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि बिहार सरकार ने निकाय चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन नहीं किया है। अति पिछड़ा वर्ग आयोग से आरक्षण के लिए रिपोर्ट तैयार करवाना सही नहीं है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि बिहार राज्य अति पिछड़ा वर्ग आयोग को एक डेडिकेटेड कमीशन नहीं माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर पक्ष रखने के लिए बिहार सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। उन्हें चार सप्ताह में अपना पक्ष रखना है।

चुनाव पर फंस गया है पेंच : अब ये समझिये कि बिहार में नगर निकाय चुनाव पर कैसे पेंच फंस गया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ आदेश दे रखा है कि स्थानीय निकाय चुनाव में राज्य सरकार पिछड़े वर्ग को तभी आरक्षण दे सकती है, जब वह ट्रिपल टेस्ट कराये। कोई भी राज्य सरकार बिना ट्रिपल टेस्ट कराये हुए ओबीसी वर्ग को स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण नहीं दे सकती है। सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि निकाय चुनाव में आरक्षण के लिए राजनीतिक तौर पर पिछड़े वर्ग की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया जाना अनिवार्य है। उसके बाद इस आयोग की सिफारिश के मुताबिक ही आरक्षण का अनुपात तय हो सकेगा। ये तय हो सकेगा कि किन पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट वाले अपने फैसले में डेडिकेटेड आयोग बनाने को कहा था। बिहार सरकार ने अति पिछड़ा वर्ग आय़ोग को ये काम सौंप दिया। अब सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है कि अति पिछड़ा वर्ग आयोग डेडिकेटेड आयोग नहीं है। इसका मतलब यही निकलता है कि अति पिछड़ा वर्ग आय़ोग की रिपोर्ट पर आरक्षण कैसे तय हो सकता है। हालांकि राज्य सरकार को चार सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट में जवाब देना है। अगर सुप्रीम कोर्ट उसकी दलीलों से संतुष्ट होता है तो फिर चुनाव का रास्ता साफ हो सकता है, लेकिन फिलहाल तो मामला एक बार फिर लटक गया है।

भाजपा बोली-नीतीश अति पिछड़ा विरोधी: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने नीतीश कुमार पर सीधा हमला बोला है। सुशील मोदी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से फिर एक बार नीतीश कुमार का अति पिछड़ा विरोधी चेहरा उजागर हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अति पिछड़ा आयोग को डेडिकेटेड कमीशन पर रोक लगा दी है। भाजपा पहले से कह रही थी कि नया कमीशन बनाइए परंतु नीतीश कुमार अपनी ज़िद पर अड़े रहे और इसका नतीजा आज सामने है।

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