जानिए कैसे रसातल में जा रही राज्य की राजनीति

जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
6 फरवरी 2023

महाराणा प्रताप जयंती पर राजकीय समारोह,कर्पूरी ठाकुर और जगदेव प्रसाद की जयंती पर बढ़-चढ़कर कार्यक्रमों का आयोजन, बिहार में इसलिए नहीं होते कि वे महान थे.बल्कि इसी बहाने जातियों को गोलबंद किया जाता है.इतना ही नहीं, सम्राट अशोक और श्रीकृष्ण की जाति की कॉपीराइट पर भी घमासान मचता है.तुलसीदास तो कठघरे में ही खड़े कर दिये गये हैं. राम को भी नहीं बख्शा जाता है बिहार में.इस पूरी कवायद का एक ही मकसद है, जातियों को गोलबंद करना, ताकि चुनावी वैतरणी पार की जा सके.

*बैकवर्ड-फॉरवर्ड का निकल रहा जिन्न*

बिहार की राजनीति में इन दिनों कई नायाब नुस्खों का प्रयोग हो रहा है. जाति, धर्म और हिन्दू धार्मिक ग्रंथों को लेकर विवाद तो चल ही रहा था,अब इसमें वर्ण की भी एंट्री हो गई है. बैकवर्ड-फारवर्ड संघर्षों का दंश झेल चुके बिहार में ऐसी विभाजनकारी राजनीति कोई आश्चर्य भी पैदा नहीं करती. बिहार में तो क्षेत्रीय पार्टियों का उदय ही जाति के आधार पर हुआ है. राजद, जदयू, हम, लोजपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियों का आधार ही जातियां रही हैं. आश्चर्य इस बात को लेकर है कि विभाजनकारी राजनीति में अब वर्ण की भी एंट्री हो चुकी है.

*तेजस्वी यादव ने उठाया है वर्ण का मुद्दा*

राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने अब वर्ण का राग छेड़ दिया है. हाल ही में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि कुछ लोग अपने वर्ण को श्रेष्ठ और दूसरे को निम्न समझते हैं. हिन्दू धर्मग्रंथों में वर्ण की चर्चा है. राजद कोटे के ही एक मंत्री चंद्रशेखर ने इससे पहले रामचरित मानस और मनुस्मृति जैसे हिन्दू धर्मग्रंथों को नफरत फैलाने वाला बताया था.उनसे ठीक पहले राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने अयोध्या की राम जन्मभूमि को नफरत की जमीन बताया था. जीतन राम माझी ने तो राम के साथ ब्राह्मणों को भी नहीं बख्शा था. राम की कथा को उन्होंने काल्पनिक बता दिया था.

*महापुरुषों की जाति पर भी होती है राजनीति*

बिहार में महापुरुषों को लेकर भी राजनीति होती रही है. कभी सम्राट अशोक की जाति को लेकर चर्चा होती है तो कभी कृष्ण को यदुवंशी करार दिया जाता है. चुनावी हवा बनाने के लिए जगदेव प्रसाद की जयंती जाति के आधार पर मनायी जाती है तो राजपूतों को खुश करने के लिए राणा प्रताप की जयंती को बिहार सरकार राजकीय समारोह का दर्जा दे देती है. कर्पूरी ठाकुर की जयंती से पिछड़ों में राजनीतिक आधार बढ़ाने का प्रयास होता है. यह सब बिहार में जान-बूझ कर होता है. यह जानते हुए भी कि महापुरुष राष्ट्र के लिए होते हैं,न कि किसी जाति या समुदाय विशेष के, फिर भी बिहार में ऐसे आयोजन राजनीति चमकाने के लिए सियासी दल अपने-अपने अंदाज में करते ही रहते हैं.

*सम्राट अशोक की जाति भी पता है बिहार को*

कभी एक लेखक ने सम्राट अशोक की तुलना मुगल शासक औरंगजेब से की थी. उसे लेकर बिहार में जातियों के सम्मान का मुद्दा उठा था. हर मामले में जाति तलाशने वाले बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने इसे दलितों और पिछड़ों का अपमान बताया था. हालांकि, मांझी से पहले भी बिहार के कुछ नेता सम्राट अशोक की जाति तय कर चुके थे.भाजपा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक दया प्रकाश सिन्हा ने सम्राट अशोक की तुलना औरंगजेब से की थी. तब जदयू ने सिन्हा की इस टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति की थी.भाजपा को भी कुशवाहा वोटों की चिंता थी, इसलिए अपने ही विंग के पदाधाकिरी पर उसने एफआईआर दर्ज करा दी थी.

*अशोक को कुशवाहा अपने वंशज बताते हैं*

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 4 अप्रैल 2017 को श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में आयोजित समारोह में ऐलान किया था कि चैत्र माह के अष्टमी को ही अशोक अष्टमी मनाया जाता है, इसलिए यही सम्राट अशोक की जयंती का दिन है. इसके बाद बिहार में हर 14 अप्रैल को सम्राट अशोक की जयंती पर राजकीय अवकाश घोषित कर दिया गया.

इतिहासकार भी नीतीश कुमार की इस खोज पर भौचक रह गए थे कि उन्होंने सम्राट अशोक की जन्मतिथि कैसे निकाल ली, लेकिन अब तो बिहार में सम्राट अशोक की जाति भी पता लगा ली गई है. सम्राट अशोक की जाति तलाशने वालों को यह नहीं पता कि मौर्य काल में जातियां ही नहीं थीं. जातियां तो ईसा की प्रारंभिक सदी में बननी शुरू हुई थीं. मनु स्मृति में भी 61 जातियों की ही बातें थीं. मनु स्मृति ईसा के प्रारंभिक सदी में ही लिखी गई थी.बिहार में कुशवाहा अपने को सम्राट अशोक का वंशज बताते हैं. बिहार में कुशवाहा जाति की आबादी पिछड़े वर्ग में यादव के बाद दूसरे स्थान पर है. यादवों की तरह इसका वोट एकजुट नहीं रहता.इसीलिए बिहार के सभी सियासी दल कुशवाहा जाति के थोक वोट के लिए तमाम तरह के तिकड़म करते हैं.जगदेव प्रसाद की जयंती को भी इसी नजरिये से देखा जा रहा है.

Loading