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अंगिका में रामचरितमानस लिखने वाले बंदी ने राष्ट्रपति से मांगी माफी, काट रहा उम्रकैद की सजा

जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
17 जनवरी 2023

भागलपुर: जाने-अनजाने में अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले कैदियों का भविष्य सुधारने के लिए जेल प्रशासन भी प्रयासरत है.इसी अवसर का लाभ उठाते हुए एक कैदी ने अंगिका में रामचरित मानस लिखी थी.उम्रकैद की सजा काट रहे इस कैदी ने अब राष्ट्रपति से सजा माफ करने के लिए पत्र लिखा है.

रामचरितमानस को अंगिका में लिखने वाले विशेष केंद्रीय कारा में उम्रकैद की सजा काट रहे मुंगेर निवासी बंदी हरिहर प्रसाद ने अपनी शेष सजा माफ करने के लिए राष्ट्रपति को पत्र लिखा है.राष्ट्रपति सचिवालय के सचिव पीसी मीणा ने सूबे के मुख्य सचिव को उसकी अर्जी पर कृत कार्रवाई से अवगत कराने के लिए पत्र भेजा है.इसकी एक कॉपी विशेष केंद्रीय कारा प्रशासन को भी भेजी गई है.इस मामले में उक्त बंदी से जुड़े जेल जीवन के रिकॉर्ड और उक्त केस से जुड़े रिकार्ड को खंगाला जा रहा है.

*1991 में हुई हत्या की वारदात में मिली थी सजा*

साल 1991 में अंग प्रदेश के मुंगेर जिले के हरपुर थानाक्षेत्र में हुए एक हत्याकांड मामले में हरिहर प्रसाद को दोषी पाया गया था.कोर्ट ने साल 2016 में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.जिसके बाद मुंगेर से भागलपुर की विशेष केंद्रीय कारा में सजा काटने के लिए उसे भेजा गया है.आठ मई 2016 से वह भागलपुर जेल में ही रह रहा है.

कभी गृह रक्षक की नौकरी करने वाले हरिहर प्रसाद ने जेल में रहते हुए 2018-19 में पवित्र ग्रंथ रामचरित मानस को अंगिका में लिखने का ऐतिहासिक काम कर दिया था और अब हरिहर पीतांबर वस्त्र धारण करता है.हर रोज वह रामायण का पाठ कर बंदियों में बदलाव की अलख जगाता आ रहा है.

*कैसे मिली रामचरितमानस लिखने की प्रेरेणा*

चूंकि हरिहर प्रसाद अंग प्रदेश के मुंगेर जिला का निवासी है और उनकी मातृभाषा अंगिका ही है. जेल में आने के बाद भी उन्होंने अपनी मातृभाषा के अस्तित्व को बरकरार रखा और जेल में हर किसी मिलने-जुलने वालों से वे अंगिका भाषा में ही बात किया करते थे. इसके साथ ही फुर्सत के क्षणों में वह लोगों को अंग प्रदेश के ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में बताते हुए अंग प्रदेश की महिमा का बखान करते थे और लोगों को यह बताते थे कि दुनिया की प्राचीन भाषा अंगिका ही है. उनका मानना है कि अंगिका केवल भाषा नहीं बल्कि सभ्यता और संस्कृति का यह वह परिचायक है, जो कई भाषाओं को जोड़कर चलती है. उनकी मातृभाषा अंगिका से प्रभावित होकर ही जेल में तत्कालीन उपाधीक्षक राकेश कुमार सिंह ने हरिहर प्रसाद को रामचरितमानस को अंगिका में लिखने का न केवल हौसला दिया, बल्कि राकेश सिंह ने हरिहर को कागज-कलम भी उपलब्ध करवाया. राकेश सिंह के तबादले के बाद दूसरे उपाधीक्षक ने भी उसका साथ दिया.जिससे हरिहर ने रामचरितमानस को अंगिका में लिखा.

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