मजदूर नेता जॉर्ज फर्नांडिस की कई भाषाओं के जानकार थे

जितेन्द्र कुमार सिन्हा / ब्यूरो प्रमुख
पटना,: जॉर्ज फर्नांडिस की जयंती के अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नेक संवाद, पटना से वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से आज मुजफ्फरपुर के सिटी पार्क में अधिष्ठापित जॉर्ज फर्नांडिस के आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण फेसबुक, यूट्यूब और ट्वीटर पर सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, भवन निर्माण विभाग और मुख्यमंत्री सचिवालय से किया गया।
उक्त कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, बिहार विधान सभा अध्यक्ष, मंत्री ऊर्जा विभाग, उद्योग विभाग, भवन निर्माण विभाग, नगर विकास एवं आवास विभाग के अतिरिक्त सम्बन्धित विभाग के अधिकारी उपस्थित थे।
ध्यातव्य है कि मजदूर नेता जॉर्ज फर्नांडिस देश के उन चंद नेताओं में शुमार रहे जिन्हें जनता से बेहद प्यार और सम्मान मिला था। शीर्ष नेता तक का सफर तय करने वाले जॉर्ज फर्नांडिस मजदूर यूनियन के आंदोलन से भारतीय राजनीति में अपनी अमिट पहचान बनाई थी। जॉर्ज फर्नांडिस आज हमलोगों के बीच नहीं हैं और आज उनकी पुण्यतिथि है। जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म 3 जून, 1930 को कर्नाटक के मंगलुरु में हुआ था।जॉर्ज फर्नांडिस हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली और कोंकणी भाषाओं के जानकार थे।
जॉर्ज फर्नांडिस राजनीति में कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने से पहले एक ऐसे मजदूर नेता थे जिनके पीछे पूरा मजदूर तबका चलता था।
फर्नांडिस जब 16 साल के थे तो वह क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने की शिक्षा लेने गए, लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा। और इसके बाद वह 1949 में महज
19 साल की उम्र में रोजगार की तलाश में मुंबई (बंबई) आ गए।
जॉर्ज फर्नांडिस नवंबर 1973 में आल इंडिया रेलवेमैन्स फेडरेशन (AIRF) के अध्यक्ष बने थे। उनके नेतृत्व में रेलवे कर्मियों की वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल चलाई गई थी। इसके लिए उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर को-ऑर्डिनेशन कमिटी बनाई थी और 8 मई 1974 को बॉम्बे में हड़ताल शुरू कराई थी, जिससे सिर्फ पूरी मुंबई ही नहीं बल्कि पूरा देश थम गया था। इस हड़ताल में करीब 15 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था। बाद में कई और यूनियनें भी इस हड़ताल में शामिल हो गईं तो हड़ताल ने विशाल रूप धारण कर लिया था। हड़ताल में टैक्सी ड्राइवर, इलेक्ट्रिसिटी यूनियन और ट्रांसपोर्ट यूनियन भी शामिल हो गया था। मद्रास की कोच फैक्ट्री मजदूर भी हड़ताल के समर्थन में, गया में रेल कर्मचारियों के अपने परिजनों, के शामिल होने से हड़ताल का असर पूरे देश में दिखने लगा और पूरा देश थम गया था। हड़ताल के बढ़ते असर को देखते हुए सरकार ने हड़ताल तोड़ने और निष्प्रभावी करने के लिए लगभग 30,000 से ज्यादा मजदूर नेताओं को जेल में बन्द कर दिया गया था। हालांकि बिना कोई कारण बताए कोऑर्डिनेशन कमिटी ने हड़ताल वापस ले ली थी। इस तरह देश की सबसे सफल रेल हड़ताल का समापन मकसद में कामयाब हुए बिना ही हो गया था, लेकिन भारत के इतिहास में यह टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ था।
इस देशव्यापी रेल हड़ताल की वजह से जॉर्ज फर्नांडिस राष्ट्रीय स्तर पर छा गए और देश में उनकी पहचान मजदूर नेता के रूप में कायम हो गई।
1975 में आपातकाल लागू होने पर जॉर्ज फर्नांडिस ‘इंदिरा हटाओ’ लहर के नायक बनकर उभरे और आपातकाल के दौरान वह लंबे समय तक अंडरग्राउंड रहे, लेकिन एक साल बाद उन्हें एक अन्य केस के अभियुक्त के रूप में गिरफ्तार कर लिया गया था।
जॉर्ज फर्नांडिस मुंबई में लगातार सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के कार्यक्रमों में शामिल होते रहे, जिससे उनकी छवि एक विद्रोही नेता की रही। फर्नांडिस समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया से प्रेरणा लिया करते थे।उन्होंने 50 और 60 के दशक में कई मजदूर हड़तालों और आंदोलनों का नेतृत्व किया था। यूनियन नेता, राजनेता और पत्रकार जॉर्ज फर्नांडीस जनता दल के प्रमुख सदस्य रहे थे। उन्होंने वर्ष 1994 में जनता दल छोड़कर समता पार्टी का गठन किया था।
जॉर्ज फर्नांडीस अपनी लंबी राजनीतिक जीवन में रेलवे, उद्योग, रक्षा, संचार जैसे मंत्रालय संभाले थे। वे 2004 तक 9 बार लोकसभा चुनाव में जीत और अगस्त 2009 से जुलाई 2010 तक राज्यसभा सांसद रहे थे।
एनडीए के शासनकाल में जॉर्ज फर्नांडिस 1998 से 2004 तक देश के रक्षा मंत्री रहे थे । कारगिल युद्ध और पोखरण परमाणु परीक्षण के दौरान फर्नांडिस ही रक्षा मंत्री रहे थे।