बिहार के सियासी गलियारों से उठा सवाल, आखिर जदयू से निकाल क्यों नहीं रहे नीतीश !

जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
30 जनवरी 2022

भागलपुर : जदयू के नेता और बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने अपने दुश्मनों की फौज खड़ी कर ली है। उनका दुश्मन भाजपा तो घोषित रूप से है, पर उसके तीर अभी तक तरकश में ही पड़े हुए हैं। उसकी कोशिश फिलहाल नीतीश के तीर से ही उन्हें बेध कर छटपटाहट-तिलमिलाहट पैदा करने की है। यानी अभी अपने ही दल से किनारे किये गये या नाखुश लोगों से नीतीश को लड़ना है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ऐसे नेताओं से निपटना नीतीश के लिए आसान चुनौती नहीं है। अभी ही उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी में रहते हुए नीतीश कुमार की नाक में दम भर दिया है। 2020 के असंबेली चुनाव के समय से ही नीतीश की तिलमिलाहट की गूंज बाहर सुनाई देती रही है। पहले वे किसी बात पर नाराज भी होते थे, तो चुप्पी साध लेते थे या संयमित अंदाज में कुछ बोलते थे। अब तो वे अपनी नाराजगी छिपा ही नहीं पाते।तुनक-तिलमिला कर तू-तड़ाक पर उतर आते हैं।

*कसम वाली बी ग्रेड की राजनीति*: कुशवाहा ने जब सच स्वीकारने के लिए बेटे की कसम की शर्त रखी तो नीतीश ऐसे तिलमिलाये कि आगे से कुशवाहा को लेकर मीडिया के सवालों का जवाब न देने की बात कह दी। नीतीश कुमार अभी ही कुशवाहा से इतने तंग आ चुके हैं कि बार-बार उन्हें पार्टी से बाहर जाने की सलाह दे रहे हैं। आश्चर्य यह कि अपने बड़बोले नेता के खिलाफ दलीय अनुशासन के नाम पर जदयू कोई कार्रवाई करने से परहेज कर रहा है। ऐसा क्यों है, यह अभी रहस्य बना हुआ है। राजनीति के अंदरखाने में जो चर्चा चल रही है, उस पर भरोसा करें तो कुशवाहा ने जदयू के शीर्ष नेताओं के भाजपा के संपर्क में होने की जो बात कही है, वह गलत नहीं है। दरअसल महागठबंधन के साथ नीतीश के जाने का मकसद ही था कि 2025 तक निष्कंटक राज बिहार में करना। अगर इस बीच विपक्ष की राजनीति में बेहतर अवसर उन्हें मिले तो वे राष्ट्रीय राजनीति का रुख करेंगे। लेकिन कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों की ओर से कोई सकारात्मक संकेत नहीं मिलने से नीतीश का मोहभंग तीन-चार महीने में ही महागठबंधन से हो गया है। महागठबंधन में उनका छीछालेदरी हो रही है। इसे भांप-समझ कर वह अपने दूतों के जरिये एक बार फिर भाजपा से हाथ मिलाने के लिए सक्रिय हो गये हैं।

*भाजपा किन शर्तों पर स्वीकारेगी कुशवाहा को !*: कुशवाहा को जब इसकी भनक मिली तो उन्हें लगा कि हमें मझधार में छोड़ नीतीश अपनी सोच रहे हैं। उसके बाद से ही उपेंद्र कुशवाहा रेस में हैं। उन्होंने खुद भाजपा के साथ जाने का मन बना लिया है। इसी क्रम में वे रोज-रोज नीतीश के खिलाफ बम फोड़ रहे हैं। जाहिर सी बात है कि भाजपा ऐसे ही किसी को क्यों कबूल करेगी। सो, उसने शर्त रख दी है कि आप जदयू को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं, यह बतायें। कुशवाहा ने भाजपा नेतृत्व को भरोसा दिया है कि अभी उनके साथ जदयू के दो सांसद हैं, जो उनके साथ भाजपा में आ सकते हैं। ये दोनों कौन हैं, उनके बारे में कुशवाहा ही बेहतर बता सकते हैं, लेकिन रणनीतिक ढंग से वे अभी इसका खुलासा नहीं करेंगे। लोकसभा चुनाव करीब आने पर ही इस रहस्य से पर्दा हटेगा। कुशवाहा के लिए भाजपा की दूसरी शर्त है कि वे जदयू की जितनी छीछालेदारी कर सकते हैं, करते रहें, ताकि इसका लाभ भाजपा उठा सके। कुशवाहा का प्रयास है कि जदयू में नीतीश कुमार को अविश्वसनीय बना दिया जाये। इसीलिए उन्होंने पहला बड़ा बम फोड़ा कि जदयू के शीर्ष नेता भाजपा के संपर्क में हैं।

*लोकसभा चुनाव में बीजेपी की रणनीति क्या होगी*: भाजपा का प्रयास है कि वह लोकसभा की अपनी जीती हुई सीटें अक्षुण्ण रखे। भाजपा का मानना है कि 2019 के चुनाव में जदयू ने जो 16 सीटें जीती हैं,वह उसके जनाधार वोटों से झोली में नहीं आयीं। भाजपा के वोट ट्रांसफर से जदयू के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के नाम पर जीते। राजद के उभार के बाद जदयू का अब अपना जनाधार महज कुर्मी-कोइरी वोटों तक ही सीमित हो गया है। इसमें भी आरसीपी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा हिस्सेदार बन गये हैं। दलित, मुसलमान व पिछड़े तो नीतीश पर अब भरोसा ही नहीं करते। असेंबली चुनाव में जदयू से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार के न जीत पाने से स्पष्ट हो गया था कि अब नीतीश कुमार मुस्लिम वोटों के ठेकेदार नहीं रहे। कुढ़नी और गोपालगंज में हुए उपचुनाव में यह भी स्पष्ट हुआ कि राजद के वोट नीतीश की पर्टी को ट्रांसफर नहीं होते और न नीतीश में अपने वोट बैंक से किसी को जिताने की क्षमता है।

*आरसीपी व प्रशांत किशोर भी खोदेंगे नीतीश की कब्र*: कुशवाहा फिलहाल पार्टी में रह कर ही नीतीश की कब्र खोदने का काम करते रहेंगे। उन्हें यह भी पता है कि जदयू उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने से पहले बीस बार सोचेगी। इसलिए कि जिस नाव की सवारी करने की कोशिश में नीतीश कुमार और उनके करीब के लोग हैं, उसी नाव का सवार उन्हें भी बनना है। इसलिए जदयू भले उनकी बातों से तिलमिलाये, लेकिन पार्टी से बाहर करने का जोखिम शायद ही उठाये। दूसरी ओर, कभी जदयू के ऊंचे पदों पर रहे आरसीपी सिंह और प्रशांत किशोर,जो नीतीश की बखिया उधेड़ने में पीछे नहीं रहेंगे। प्रशांत किशोर तो अपनी जन सुराज यात्रा के जरिये पहले से ही इस काम में जुट गये हैं। रुक-रुक कर नीतीश के खिलाफ विष वमन करने वाले आरसीपी सिंह अब और हमलावर होंगे।

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