जनपथ न्यूज डेस्क
जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना
12 जनवरी 2023

कैलेंडर नव वर्ष शुरू होने के बाद हिन्दू धर्म का सबसे पहला पर्व ‘‘मकर संक्रांति’’ होता है। ‘‘मकर संक्रांति’’
हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में एक है। इस दिन सूर्यदेव धनु राशि से निकल कर मकर में प्रवेश कर जाते है।
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से और अलग-अलग नाम से ‘‘मकर संक्रांति’’ मनाया जाता है। केरल, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में मकर संक्रांति को ‘‘संक्रांति’’, तमिलनाडू में ‘‘पोंगल’’, पंजाब और हरियाणा में ‘‘लोहड़ी’’ और वहीं आसाम में ‘‘बिहू’’ के रूप में मनाया जाता है।

मकर संक्रांति के दिन ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की उपासना एवं अराधना किया जाता है, इसलिए हिन्दू धर्म में इसे महापर्व कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य उत्तरायण होकर मकर रेखा से गुजरता है तब ‘‘मकर संक्रांति’’ मनाया जाता है। ‘‘मकर संक्रांति’’ का सीधा संबंध पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से होता है, जब भी सूर्य मकर रेखा पर आता है तो उस दिन 14 जनवरी ही होता है, इसलिए मकर संक्रांति का त्योहार प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन भगवान शिव ने भगवान विष्णु को आत्मज्ञान का दान दिया था, महाभारत कथा के अनुसार, भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन ही अपने शरीर का त्याग किया था, जबकि सामान्यतः यह माना जाता है कि इसी दिन से ऋतु परिवर्तन होता है और सर्दियों से गर्मी की ओर मौसम परिवर्तन होता है, इसलिए मकर संक्रांति के दिन से वसंत ऋतु की शुरुआत होने लगता है। मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से शुभ कार्य यथा विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि कार्य शुरू होते हैं।

हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष ग्रहों के राजा सूर्य का मकर राशि में 14 जनवरी 2023 की रात 8 बजकर 21 मिनट पर गोचर होगा। ज्योतिषियों के अनुसार, 15 जनवरी 2023 को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा, इस दिन मकर संक्रांति का पुण्य काल सुबह 07 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगा और शाम 07 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। बनारस पंचांग के अनुसार उदया तिथि में संक्रांति मनाने का तर्क देते हैं और उदया तिथि के अनुसार 15 को मकर संक्रांति मनाने का परामर्श दिया जा रहा है।

मकर संक्रांति के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और घर के बने व्यंजनों का स्वाद लेते हैं जो आमतौर पर गुड़ और तिल से बने होते हैं। भारत के कुछ हिस्सों में खिचड़ी भी खाई जाती है। तमिलनाडु में, यह त्योहार पोंगल के रूप में मनाया जाता है, और लोग बड़े उत्साह के साथ ताजे दूध और गुड़ के साथ उबले हुए चावल खाते हैं।
मध्य प्रदेश राजस्थान और गुजरात में, उत्तरायण या मकर संक्रांति एक भव्य त्योहार के रूप में मनाया जाता है। यहां पतंगबाजी या पतंग उत्सव इस दिन का प्रमुख आकर्षण होता है। इन राज्यों में मकर संक्रांति का त्योहार एक महीने पहले दिसंबर से ही शुरू हो जाता है और आसमान मकर संक्रांति के स्वागत में रंगीन पतंगों से भर जाता है। झारखंड और बिहार में मकर संक्रांति के दिन लोग नदियों और तालाबों में डुबकी लगाते हैं और अच्छी फसल के उत्सव के रूप में मौसमी व्यंजनों का आनंद लेते हैं। व्यंजनों में चुरा, तिल से बनी मिठाई आदि शामिल हैं। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में पेड्डा पांडुगा चार दिवसीय उत्सव मनाया जाता है। मकर संक्रांति से एक दिन पहले भोगी के रूप में जाना जाता है, जिसमें लोग पुरानी चीजों से छुटकारा पाकर उन्हें अलाव में जला देते हैं। अगला दिन पेड्डा पांडुगा के रूप में जाना जाने वाला प्रमुख दिन होता है जब लोग नए और रंगीन कपड़े पहनते हैं और देवताओं के साथ-साथ अपने पूर्वजों को प्रार्थना और पारंपरिक भोजन देते हैं। केरल में इस त्योहार को मकरविलक्कू के नाम से जाना जाता है। इस दिन सबरीमाला की पहाड़ियों को रोशनी से सजाया जाता है। सबरीमाला की पहाड़ियों को साल में सिर्फ तीन ही बार सजाया जाता है और केरल में मकरविलक्कू के नाम से मनाया जाने वाले त्योहार मकर संक्रांति उन तीन दिनों में से एक है। इस दिन को केरल में खूब खुशी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

‘‘मकर संक्रांति’’ रविवार को पड़ने के कारण सूर्य का पुण्यकाल विशेष लाभ देने वाला बताया गया है। इस दिन स्नान, दान, व्रत, पूजा-पाठ आदि का विशेष महत्व होता है। इस दिन दान सुपात्र को या सही व्यक्ति को दिया जाय, जो प्राप्त दान को श्रेष्ठ कार्य में लगा सके, वही पुण्य फलदायी होता है। अर्थ वेद में कहा गया है कि सैकड़ों हाथों से कमाओ और हजारों हाथों से बांट दो। दान कई प्रकार के होते है यथा- अर्थ दान, विद्या दान, श्रम दान, ज्ञान दान, अंगदान, रक्तदान आदि। इनमें से हर एक की अपनी अपनी महत्ता है।

मकर संक्रांति के दिन से प्रतिदिन “दिन लंबे” और “रात छोटी” होने लगती है। सूर्य का किसी राशि विशेष में भ्रमण करना संक्रांति कहलाता है। सूर्य प्रत्येक माह में राशि परिवर्तन करता है इसलिए एक वर्ष में कुल 12 संक्रांतियाँ होती है। देवीपुराण में संक्रांति काल के संबंध में बताया गया है कि स्वस्थ एवं सुखी मनुष्य जब एक बार पलक गिराता है तो उसका तीसवां भाग तत्पर कहलाता है, तत्पर का सौंवां भाग त्रुटि कहा जाता है तथा त्रुटि के सौंवे भाग में सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारो ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना क्रांतिचक्र कहलाता है। इस परिधि चक्र को बांटकर बारह राशियाँ बनी है। लेकिन वर्ष में दो संक्रान्तियाँ सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है। एक मकर संक्रांति और दूसरा कर्क संक्रांति। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति मनाया जाता है। इस समय सूर्य उत्तरायण होता है और सूर्य की गर्मी शीत के प्रकोप एवं शीत के कारण होने वाले रोगों को समाप्त करने की क्षमता रखती है। इसलिए इस दिन से सूर्य की किरणें औषधि की तरह काम करने लगती है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन स्नानादि करने के बाद गुड़, घी, नमक और तिल के अतिरिक्त काली उड़द की दाल और चावल दान करना चाहिए। उड़द के दाल की खिचड़ी खानी चाहिए। कहा जाता है कि खिचड़ी खाने से सूर्य देव और शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। बाबा गोरखनाथ के समय से ही खिचड़ी बनाने की प्रथा शुरू हुई थी। इसकी भी एक कहानी है कि जब खिलजी ने देश पर आक्रमण किया था तब नाथ योगियों को युद्ध के समय भोजन तैयार करने का समय नहीं मिलता था और वे भूखे-प्यासे युद्ध के लिए निकल जाते थे। उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियां एक साथ पकाने की सलाह दी थी। यह खाना जल्दी तैयार हो जाता था और योगियों का पेट भी भर जाता था और साथ ही काफी पौष्टिक भी होता था। तत्काल तैयार किए जाने वाले इस भोजन का नाम खिचड़ी बाबा गोरखनाथ ने ही रखा था। खिलजी से मुक्त होने के बाद योगियों ने जब मकर संक्रांति पर्व मनाया था तो उस दिन भी सभी को खिचड़ी का ही वितरण किया था। तभी से मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने की प्रथा शुरू हो गई। आज भी गोरखपुर स्थित बाबा गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के अवसर पर खिचड़ी मेले का आयोजन होता है और परसादी के रूप में खिचड़ी बांटी जाती है।

इस वर्ष की मकर संक्रांति विद्वान और शिक्षित लोगों के लिए काफी अच्छी रहने वाली है। व्यापारियों और कारोबारी लोगों को वस्तुओं की लागत कम होने से कुछ लाभ होने की संभावना है। हालांकि इस दौरान किसी तरह का भय और चिंता भी बनी रह सकती है। लोगों को स्वास्थ्य लाभ मिलेगा। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में मधुरता आएगी।अनाज के भंडारण में वृद्धि होगी

यह भी मान्यता है कि उड़द की दाल की खिचड़ी खाने से सूर्यदेव और शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है। उसी प्रकार चावल चन्द्रमा का कारक, नमक शुक्र, हल्दी गुरू बृहस्पति, हरी सब्जियों को बुध का कारक माना गया है। खिचड़ी की गर्मी का संबंध मंगल से और मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से कुंडली में करीब-करीब सभी ग्रहों की स्थिति बेहतर होगी ऐसी मान्यता है।

मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर हमें सूर्य पूजा और माघ नक्षत्र पूजा करनी चाहिए और साथ ही पवित्र मंत्रों का जाप करना चाहिए। संक्रांति के अवसर पर हमें विवाह, संभोग, शरीर पर तेल लगाना, हजामत बनाना/बाल काटना, और नए उद्यम शुरू करने जैसे कार्यों से बचना चाहिए।

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