जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
3 जनवरी 2023

भागलपुर : बिहार में शहीद जगदेव प्रसाद की जयंती 2 फरवरी को मनाई जा रही है। जदयू के बागी नेता उपेंद्र कुशवाहा ने इसकी घोषणा पहले ही कर दी थी। लव-कुश समीकरण से अस्तित्व में आया जदयू भी क्यों पीछे रहता, इसलिए उसने भी आधिकारिक तौर पर कार्यक्रम रख दिया। पिछड़े वर्ग से आने वाले कर्पूरी ठाकुर की जयंती या पुण्यतिथि मनाने से बीजेपी को परहेज नहीं है, लेकिन इसी वर्ग से आने वाले जगदेव प्रसाद की जयंती से उसने अपने को दूर रखा है। बीजेपी ने यह कह कर जयंती समारोह के आयोजन से अपने को अलग कर लिया है कि पहले से इसकी परंपरा नहीं रही है। कर्पूरी ठाकुर की हाल ही में जब जयंती थी तो जदयू, आरजेडी के साथ बीजेपी ने भी इसका आयोजन किया, लेकिन जगदेव प्रसाद से बीजेपी ने परहेज कर लिया। बीजेपी ने ऐसा क्यों किया, इसे समझने के लिए उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति को समझना होगा। उपेंद्र कुशवाहा को बीजेपी कुशवाहा जाति के नेता के रूप में स्थापित करना चाहती है। कुशवाहा की बीजेपी से नजदीकी की जो खबरें आ रही हैं, उससे स्पष्ट है कि कुशवाहा ने कोइरी वोटों को अगर साध लिया और वे बीजेपी के साथ रहे तो इसका फायदा उसे बैठे-बिठाये मिल जाएगा। संभव है कि इसीलिए बीजेपी ने अपनी ओर से कोई उत्सुकता नहीं दिखायी। अब चूंकि जेडीयू और कुशवाहा आयोजन को लेकर आमने-सामने हैं तो जाहिर है कि उनकी ताकत का भी पता चल जाएगा। यह भी कि जिस जाति से कुशवाहा आते हैं, उस पर उनकी पकड़ का भी अंदाज लग जाएगा।

*बिहार में हर जाति के हैं अपने आदर्श नेता*: बिहार में हर जाति के अपने महापुरुष या नेता हैं. जगदेव प्रसाद कोइरी जाति में आदर्श पुरुष माने जाते हैं। उनके अनुगामी बन कर उपेंद्र कुशवाहा अपने को स्थापित करना चाहते हैं तो यादव जाति के लोग लालू प्रसाद को अपना आदर्श मानते हैं। कुर्मी बिरादरी के लोग तो नीतीश को अपना नेता मानते ही हैं। सवर्णों में भी अलग-अलग जातियों के अपने-अपने नेता हैं। जगदेव प्रसाद की जयंती उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि दोनों जातियों की तकरीबन 6-7 फीसदी आबादी बतायी जाती है। नीतीश कुमार ने इन्हीं दोनों जातियों का 1994 में सम्मेलन बुला कर अपनी पार्टी बनायी थी। तभी से बिहार में लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) समीकरण की चर्चा होने लगी।

*जानिए जगदेव प्रसाद के बारे में*: बिहार के जहानाबाद में जनमे जगदेव प्रसाद फ्रांस की क्रांति (1789) से सर्वाधिक प्रभावित थे। फ्रांस की क्रांति का मूल सिद्धांत था आजादी, समानता और भाईचारा। जगदेव प्रसाद मानते थे कि समाज के 100 में 99 लोग शोषित हैं और उन्हें उनका हक मिलना चाहिए। उनका नारा था – सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे भाग हमारा है। धन,धरती और राजपाट में उन्होंने भागीदारी की बात उठायी थी। जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को हुआ था। 5 सितंबर 1974 को उनकी हत्या हो गई थी। अर्थशास्त्र और साहित्य में वे पोस्ट ग्रेजुएट थे। उनके जीवन पर रस्किन की सोशल इकोनामी का काफी प्रभाव था। वे मानते थे कि कुछ लोगों के हाथों में संसाधन का होना अन्याय को जन्म देता है। उन पर ज्योति राव फूले के सत्य शोधक समाज का भी काफी प्रभाव था। उनका मानना था कि कुछ लोगों के हाथों में संसाधन होने के कारण ही शैक्षिक और रोजगार के मामले में पिछड़ापन कायम है। जगदेव बाबू को बिहार का लेनिन भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने जीते जी बिहार की राजनीति को क्रांतिकारी बना दिया था।

*शोषितों का हक मांगा तो हो गयी हत्या* : आरोप है कि शोषित वर्गों के अधिकार के आंदोलन के क्रम में ही जगदेव प्रसाद की हत्या की गई थी। वे राम मनोहर लोहिया के विचारों से भी प्रभावित थे। जगदेव बाबू सोशलिस्ट पार्टी के बिहार प्रदेश के सचिव रहे। बिहार में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाने में उनका योगदान था। राम मनोहर लोहिया ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) में प्रस्ताव पारित किया कि 1967 के राष्ट्रीय चुनाव और विधानसभा चुनाव में 60 प्रतिशत टिकट दलित, पिछड़ा, अति-पिछड़ा, मुस्लिम और महिलाओं को दिया जाएगा.यह बात जगदेव बाबू को पसंद आयी थी। हालांकि यहीं से बिहार में पिछड़े-अगड़े का मतभेद भी उजागर होना शुरू हुआ।

बहरहाल, विधानसभा के चुनाव में 68 सीटों पर सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जीते और बिहार में गठबंधन की सरकार बनी। पहली गैर कांग्रेसी सरकार में महामाया प्रसाद मुख्यमंत्री और कर्पूरी ठाकुर उप मुख्यमंत्री बनाये गये। उस सरकार की एक बात से जगदेव प्रसाद सहमत नहीं थे। उस सरकार में सिर्फ 20 प्रतिशत पिछड़ों को मंत्री बनाया गया। उसमें भी अधिकतर राज्य मंत्री थे। कैबिनेट मंत्री अधिकतर अगड़ी जाति से थे और वह भी आठवीं-दसवीं पास। विसंगति का आलम यह कि पोस्ट ग्रेजुएट पिछड़ी जाति के नेताओं को राज्य मंत्री बनाया गया था। यह सोशलिस्ट पार्टी के मूल सिद्धांत के विपरीत था। जगदेव बाबू ने इसका विरोध मुख्यमंत्री से किया और बाद में राम मनोहर लोहिया से भी।

*और पार्टी का विभाजन कर नयी पार्टी बनायी*: इसके बाद जगदेव प्रसाद ने पार्टी का विभाजन कर एक नई पार्टी ‘शोषित दल’ बनायी। 31 विधायकों को साथ लेकर कांग्रेस के समर्थन से बिहार में पहली बार सतीश प्रसाद और बी.पी. मंडल को मुख्यमंत्री के पद पर सुशोभित कराया। इसे जगदेव प्रसाद की देन मानने में किसी को संकोच नहीं होना चाहिए कि बिहार में पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री बनने का प्रचलन उन्होंने ही शुरू कराया।

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