जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
4 मार्च 2023

भागलपुर : बिहार के सीएम नीतीश कुमार का बदला हुआ रूख विधानसभा में दिखने लगा है। बुधवार को वे गलवान घाटी में शहीद के पिता के साथ हाजीपुर पुलिस की बदसलूकी पर भड़के हुए नजर आ रहे थे। उन्होंने सदन में इसका भी जिक्र किया कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शहीद के पिता को गिरफ्तार करने पर नाराजगी जाहिर की है। इसके साथ ही सीएम नीतीश कुमार ने अपने बड़बोले एजुकेशन मिनिस्टर चंद्रशेखर पर भी भड़ास निकाली। हालांकि चंद्रशेखर को लेकर उनके मन में तो उसी दिन से गुस्सा भरा हुआ था, जब नालंदा विश्वविद्यालय में उन्होंने रामचरितमानस को लेकर विवादास्पद बयान दिया था।

*सदन में नीतीश ने पढ़ाया चंद्रशेखर को पाठ*

कैबिनेट बैठक में हल्के अंदाज में नीतीश ने जब चंद्रशेखर से कहा कि क्या-क्या बोलते रहते हैं, तो उनका जवाब था- कुछ गलत नहीं कहा। तब से चंद्रशेखर बेलगाम हो गये थे। उनके बेलगाम आचरण का आलम यह रहा कि सातवें चरण की शिक्षक नियुक्ति नियमावली का ब्योरा कैबिनेट में जाने के पहले ही उनके स्तर पर लीक हो गया। नीतीश की खामोश नाराजगी के कारण नियमावली बैठक में आयी ही नहीं। बुधवार को विधानसभा में सीएम ने चंद्रशेखर की ओर इशारा करते हुए इसका जिक्र तो किया ही, उन्हें पाठ भी पढ़ाया कि विभाग की ओर से कैबिनेट मीटिंग के लिए भेजे गये प्रस्ताव के बारे में तब तक चुप्पी साधनी पड़ती है,जब तक वह पास न हो जाए।

*राजत नेताओं से नीतीश की नाराजगी की कई वजहें*

दरअसल, नीतीश कुमार राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन के समर्थन से सीएम जरूर बने हैं, लेकिन राजद के नेता लगातार उनके खिलाफ अनाप-शनाप बोलते रहते हैं। कभी विधायक विजय मंडल होली बाद तख्तापलट की तारीख मुकर्रर करते हैं तो कभी लोहिया के हवाले से सत्ता बदलते रहने की बात कहते हैं। सुधाकर सिंह ने तो उनके खिलाफ बोलते रहने का बीड़ा ही उठा लिया है।

पूर्णिया में आयोजित महागठबंधन की रैली में हुई घटना से भी नीतीश को तकलीफ जरूर हुई होगी। रैली में शिक्षक अभ्यर्थियों ने नियुक्ति के लिए हंगामा मचाया। आश्चर्य यह कि वे तेजस्वी यादव के समर्थन में नारे भी लगा रहे थे। यानी उन्हें नीतीश कुमार से परेशानी थी तो तेजस्वी के प्रति प्रेम उमड़ रहा था। नीतीश नादान नहीं हैं,जो इसका निहितार्थ न समझ पाए हों। सदन में चंद्रशेखर के बहाने काफी दिनों से उनके मन में पल रहे गुस्से का गुबार ही शायद बाहर आ रहा था।

*कहीं राजद नेताओं को औकात में रहने का इशारा तो नहीं..?*

राजद नेता जिस तरह का बर्ताव कर रहे हैं, ऐसे में संभव है कि उन्हें काबू में रखने के लिए शीर्ष नेतृत्व को यह उनका कड़ा संदेश हो। लालू परिवार पर सीबीआई का शिकंजा कसते देख नीतीश के लिए उन्हें चेतावनी देने का यह अनुकूल समय हो सकता है। गलवान के शहीद के पिता के मामले में राजनाथ सिंह की बातचीत हो या बिहार में नये राज्यपाल की नियुक्ति पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आये फोन की बात। नीतीश ने इसे सार्वजनिक कर संभव है कि राजद को संदेश दिया हो कि भाजपा के बड़े नेताओं से बातचीत पर पूर्ण विराम नहीं लगा है।

सनद रहे, जब 2017 में तेजस्वी पर लगे आरोपों के मद्देनजर जब नीतीश ने महागठबंधन छोड़ा था, तब किसी को भनक नहीं थी कि वे भाजपा के साथ खिचड़ी पका चुके हैं। उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा देने और भाजपा के साथ नये गठबंधन की सरकार बनाने का दावा संग-संग पेश किया था।

*भाजपा भले नीतीश को लेने पर ना कह रही, मगर जरूरत तो है!*

भाजपा ने अभी तक तो यही कहा है कि नीतीश कुमार के लिए एनडीए में वापसी के दरवाजे बंद हो चुके हैं। कुछ इसी अंदाज में नीतीश ने भी महागठबंधन में आने पर भाजपा के बारे में भी कहा था। लेकिन यह सर्वाविदित है कि राजनीति में कोई किसी का स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता। भाजपा जिस तरह छोटे दलों को साथ लाने की कोशिश कर रही है, ऐसे में अगर नीतीश जैसा ताकतवर और आजमाया साथी मिल जाए तो उसे आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

बहरहाल, महागठबंधन के साथ नीतीश कुमार के अभी पांच महीने ही पूरे हुए हैं और इन पांच महीनों में उन्हें राजद नेता बार-बार एहसास कराते रहे हैं कि वे उन्हें पसंद नहीं हैं। ऐसे में कुछ नया हो जाए तो अचरज की बात नहीं है। क्योंकि पिछले दो दिनों में नीतीश ने राजद कोटे के दो मंत्रियों (इसरायल मंसूरी और चंद्रशेखर) की क्लास लगाई है।

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