जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: जितेंद्र कुमार सिन्हा
Edited by: राकेश कुमार
4 मार्च 2023

जब बात होली की हो तो सहसा हीं मन खुशी से झूम उठता है। बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गों तक में उमंग की तरंगे दौड़ जाती है। सच कहूं तो बसंत ऋतु की हवाओं में हीं एक रोमांचक अहसास होता है जो हम सभी को जीवंतता से भर देता है। बहुत सारे लॉग तो ऐसे भी हैं जो दिखते तो ऐसे हैं जैसे किसी त्योहार या मौसम का उनपर कोई प्रभाव हीं नहीं लेकिन अंदर हीं अंदर आनंदित और प्रफुल्लित होते रहते है। वे अपने खुशीयों को व्यक्त हीं नहीं होने देते कारण वो जाने। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अश्लील और भोजपुरी गानों का झूठा विरोध तो करते हैं लेकिन उसकी चटकदार चासनी में डूबे रहते हैं। मैने हमेशा ऐसा देखा है (खासकर भले आदमी लोगों को )जो मजा तो लेते हैं लेकिन चेहरे पर झलकने नहीं देते । कुछ ऐसे रूमानी बुजुर्ग हैं जो जवानों को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो कान में ईयरफोन के माध्यम से इस रंगभरी मौसम का सुख लिए फिरते हैं। हमें उनसे कोई शिकायत नहीं है लेकिन कहना यह चाहता हूं की अपनी तरह से जिंदगी का मजा लेने का हक सबको है , लेकिन दूसरे को झूठे उपदेश देना ठीक नहीं। कहा भी गया है की सबसे बडा उपदेश वह है जो अपने आचरण से दिया जाए केवल प्रवचन से नहीं।

होली जब भी नजदीक आता है तो अपनी पुरानी यादों को समेटे हुए आता है। हमारी वो होली कहां गई जब होलिकादहन की राख से पहला स्नान शुरू होता था। जब सभी ग्रामीण चाहे डीएम साहब हों या रिक्शा वाला हो एक दूसरे को खूब राख रगड़ते थे। नाली की सफाई के लिए इससे सुन्दर समय कोई हो नहीं सकता था। पुआ के साथ साथ ठंढई का भी भरपूर इंतजाम रहता था। खासकर हमलोग उसको खोजते थे जो गाली में डॉक्टरेट हो। बिना उसके होली अधुरी रह जाती थी। गांवो में, गली मुहल्लो में जवान से लेकर बुढ़ी भाभीयों को खदेड़ने की परम्परा थी। गांव गांव डंफ की आवाज और खांटी भोजपुरी गीत जिसमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय था,’ राम खेले होली लक्ष्मण खेले होली लंका गढ़ में रावण खेले होली ’कुछ देहाती ठसक लिए हुए गाने भी थे, जो होली बीतने के बाद भी कई दिनों तक बाथरूम सांग के रूप में लोगों के जुबान पर होते थे। इसके साथ ही कुछ दवाएं जो हर घर में दिखाई देती थी उसमें ’यूनिजाईम ’ सबसे आगे होता था । नई दुल्हनों की होली के बारे में कुछ नहीं कहूंगा सभी समझदार हैं। होली मिलन समारोह में स्टेटस सिम्बल का कोई ख़्याल नहीं होता था।

आईए, वर्तमान परिदृश्य में अपने प्रिय होली को देखते हैं। आज रंग – गुलाल भी पूछकर लगाना हैं नहीं तो होली के दिन ही थानों में बीतेंगे। होली मतलब मांस भक्षण ,शराब सेवन, एकांतवास हो गया है। समान्यत: बच्चों को कुछ दिन पहले से ही सावधान कर दिया जाता है कि होली के दिन घर से बाहर नहीं जाओ। घर में रहकर हीं होली मनाओ। कोई आ जाए होली खेलने तो बोल देना कि घर के सभी सदस्यों को होलीकादहन के दिन से हीं जाड़ बुखार जकड़े हुए है इसलिए गेट नहीं खोल सकते। गेट बंद और अंदर मांस भात , पुलाव पेप्सी के लिए बुखार उतरा हुआ हैं। हंसी तो तब आती है जब कुछ लोगों माथे में सरसों का तेल (ज्यादा ही मात्रा में ) थोपकर निकलते हैं ताकि वे झूठे साबित नहीं हो सके । ऐसा खासकर वे लोग जो होली फोबिया के शिकार होते हैं। अब तो कुछ ऐसे भी देशभक्त सलाहकार घुम रहे जो कहते है कि होली पानी को बर्बादी है। कुछ लोगों को मंगलवार और को होली होने पर अनंत तकलीफ होती है कारण आप जानते हैं। एलडस हक्सले जो अंग्रेजी के एक सुविख्यात साहित्यकार हैं उन्होंने अपने एक लेख में लिखा था कि आधुनिक समाज पर सबसे बड़ा खतरा एटम बम से नहीं है ना ही भयंकर युद्ध से है बल्कि हमारी मानसिक विकृति से है। यह हमारी मानसिक विकृति हीं है जिसने हमारी स्वतंत्रता छीन ली है। इंटरनेट के इस दौर में मानसिक प्रदूषण इस खतरनाक स्थिति तक पहूंच गई है कि सहज सामाजिक सहोकर भी आशंकाग्रसीत हो गया है। किसी भी त्योहार का मजा लेने के लिए सबसे पहले मन से खुश होना जरूरी है। आधुनिक भौतिकवादी परिवेश में तथा उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारी खुशीयों पर नजर लगा रखी है। इसके लिए हम स्वयं भी कम जिमेवार नहीं हैं। होली की खुशी का अहसास तबहीं हो सकता है जब मन कुविचारों से मुक्त हो। बसंती पवन उसी के लिए है जो प्रेम का वास्तविक अर्थ समझे। आईए, हम होली के इस पवित्र त्योहार का स्वाभाविक और प्राकृतिक आनंद लें।

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