जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना
Edited by: राकेश कुमार
13 फरवरी 2023

भागलपुर : भारत में कुल 23 आईआईटी हैं, इनमें स्नातक/परास्नातक/पीएचडी इत्यादि मिलाकर लगभग 22000 (बाइस हजार) छात्र हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2023-24 के लिए हेफा लोन इत्यादि को मिलाकर सभी आईआईटी को कुल बजट दिया है लगभग 9661 करोड़ रुपए.बहुत बड़ा हिस्सा तो वेतन, भत्ते व प्रशासनिक खर्चों इत्यादि में ही चला जाता है। खैर इस पोस्ट में बजट बढ़ाने के मुद्दे पर बात नहीं है।

इस पोस्ट पर बात यह है कि आईआईटी में छात्रों से एक रुपया फीस नहीं लेनी चाहिए, न तो पढ़ाई की फीस, न ही छात्रावास की फीस। अभी यह फीस लगभग 3 लाख रुपए साल है,जो भारत के करोड़ों परिवारों के लिए बहुत अधिक है। यदि भारत सरकार चाहे तो छात्रों की 3 लाख रुपए सालाना की पढ़ाई फीस व छात्रावास फीस बिलकुल शून्य कर सकती है।

आईआईटी में छात्रावास मिलाकर सालाना फीस लगभग ढाई से 3 लाख रुपए पड़ती है। यदि यह मान लिया जाए कि सरकार परास्नातक व पीएचडी वालों से फीस लेती है और उनको स्काॅलरशिप नहीं देती है (वैसे मेरा मानना है कि सरकार इतनी अधिक बेशर्म तो नहीं ही होगी)। फिर भी हिसाब-किताब के लिए मान लिया जाए कि सभी लगभग 22000 छात्रों से 3 लाख रुपए सालाना फीस ली जाती है.इस हिसाब से कुल फीस हुई 660 करोड़ रुपए। मतलब यह कि यदि सरकार चाहे तो सिर्फ लगभग 600-700 करोड़ रुपए खर्च करके सभी छात्रों की फीस शून्य कर सकती है, जो बजट 9661 करोड़ है-उसको 10400 करोड़ किया जा सकता है।

जो देश लाखों करोड़ रुपए भारत सरकार को पैदा करके देता है, उस देश के छात्रों के लिए 600-700 करोड़ देना कौन सी बड़ी बात है। आम लोग देश के असल मालिक हैं, कमाकर देते हैं, उन्हीं के बच्चों के वह भी जिन छात्रों को मेधावी माना जाता है, देश का भविष्य माना जाता है, उन पर खर्च करना जैसे कामों के लिए ही तो सरकारें व देश के तंत्र होते हैं। सरकारें व तंत्र होते ही इसीलिए हैं।

भारत के लोग प्रति वर्ष लाखों करोड़ रुपए देश को पैदा करके देते हैं,तो क्या यह देश छात्रों को निःशुल्क शिक्षा भी नहीं सकता है..? मेरी समझ में आज तक यह नहीं आया कि भारत सरकार हो या राज्य सरकार इनके किसी भी शैक्षणिक, तकनीकी, शोध व प्रोफेशनल संस्थान को छात्रों से एक भी रुपए फीस लेने की आखिर जरूरत ही क्या है?
समय के साथ जिस तरह से सरकारी स्कूलों व महंगे प्राइवेट स्कूलों की गुणवत्ता व एक्सपोजर में भारी अंतर आया है। वह केवल और केवल सरकारी दोयम नीतियों के कारण ही आया है, तो नीति बनाने वालों व नौकरशाहों की कमियों व अयोग्यता का भुक्तभोगी देश का आम छात्र क्यों हो।

कायदे से तो यदि सरकार गंभीर है, मेधावी छात्रों को खोजने के लिए तो जो छात्र पिछड़े इलाकों से हैं, जो छात्र पिछड़े इलाकों के स्कूलों से पढ़े हैं, जो छात्र सरकारी स्कूलों में पढ़े हैं, उन छात्रों को अंकों का वेटेज मिलना चाहिए, कई और उनके लिए प्रकार कई तरह वेटेज होने चाहिए। ताकि वास्तव में देश के हर कोने से असल में मेधावी छात्रों को अवसर मिल सके।
यदि मन में ईमानदारी हो, वास्तव में असली वाली राष्ट्रभक्ति हो,देश व देश के लोगों से प्रेम हो,जवाबदेही मन से महसूस होती हो, तो ऐसा बहुत कुछ है जो बिना बड़े जद्दोजहद के किया जा सकता है। जरूरत है तो केवल और केवल ईमानदारी, असली राष्ट्रभक्ति, देश से प्रेम, देश के लोगों से प्रेम व जवाबदेही मन से महसूस करने की। यदि यह सब है तब शाब्दिक तार्किक ढोंग इत्यादि करने की बिलकुल भी कोई जरूरत नहीं।

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