*अगले कुछ महीनों में दोनों दलों का होगा विलय…?*

जनपथ न्यूज डेस्क
Reported by: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
Edited by: राकेश कुमार
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26 अक्टूबर 2022

बिहार के राजनीतिक गलियारों में इन दिनों यह चर्चा जोरों पर है कि राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड में विलय हो जाएगा और बिहार की कमान तेजस्वी यादव के हाथ में आ जाएगी। इसके साथ ही इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार बनेंगे। दोनों दलों के बीच यह चर्चा जोरों है। संभावना यह भी जताई जा रही है कि 2023 में इसकी घोषणा होगी, लेकिन इस मुद्दे पर सीनियर लीडरशिप ने चुप्पी साध ली है।

वैसे बिहार की सियासी तस्वीर पिछले नौ सालों में कई बार बदल चुकी है। जो दल साथ चुनाव लड़ते हैं, सरकार बनने के बाद एक साथ टिक नहीं पाते। जिनके खिलाफ चुनाव लड़ते हैं, सरकार बनने पर उनके साथ आ जाते हैं। लेकिन इस बार ऐसा हो रहा है कि बिहार की राजनीति के कई नाम और निशान ही बदल जाएंगे। दोनों पार्टियों के सूत्र बता रहे हैं कि राजद और जदयू दोनों ही इस नए बदलाव के लिए पूरी तरह तैयार हैं। दोनों दलों की तरफ से इसकी तैयारी शुरू भी हो गई है। सूत्रों की बात मानें तो कुछ बिंदुओं पर अभी सहमति बननी बांकी है। इस साल के अंत में या अगले साल की शुरुआत में दोनों दल एक हो सकते हैं।

विलय के बाद नाम व निशान बदलेगा : मालूम हो कि जदयू और राजद के विलय की चर्चा जोर पकड़ रही है। मिली जानकारी के अनुसार जदयू और राजद का विलय 2023 में होगा। तब नीतीश कुमार इस्तीफा दे देंगे। इसके बाद बिहार के मुख्यमंत्री पद पर तेजस्वी यादव की ताजपोशी होगी। विलय की तैयारी तय है। पूरी स्ट्रेटजी पहले ही बन चुकी है। इसके अनुसार 2023 में जदयू और राजद के विलय का प्रारूप तैयार हो चुका है।

इस बात की चर्चा उस समय ही शुरू हो गई थी,जब दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव पेश की जा रही थी। राजद नेता भोला यादव ने यह प्रस्ताव रखा कि राजद के निशान, झंडा और तमाम चीजों में बदलाव होंगे तो वह काम तेजस्वी यादव या लालू प्रसाद यादव ही करेंगे। अमूमन, जो पार्टी स्थायी तौर पर रहती हैं, उनके राजनीतिक प्रस्ताव में इस बात की चर्चा नहीं होती है। लेकिन, यह यह चर्चा राजनीतिक प्रस्ताव में हुई तो इस बात को बल मिला कि जदयू और राजद एक साथ जाएंगे।

न जदयू रहेगा, न राजद : राजद और जदयू की तैयारी यह है कि विलय के साथ ही दोनों दल के नाम और निशान समाप्त कर दिए जाएं। एक नया दल बनें, जिसमें सभी नेता शामिल हो जाएं। इससे अन्य कई नेताओं को भी सहूलियत होगी, जिन्हें अभी के राजद या जदयू से परहेज है। नए नाम और निशान के साथ नई पार्टी का फेस अधिक मजबूत साबित हो सकता है। सूत्रों का कहना है कि पुराने जनता दल का एक बार फिर उदय हो जाएगा। जनता दल टूट कर ही राजद और जदयू बना था। अब एक बार फिर दोनों दल आपस में मिलेंगे तो जनता दल जैसी ही तस्वीर बनेगी।

राजद ने बढ़ा दिया है कदम : नाम और निशान में बदलाव के लिए राजद ने पहले कदम बढ़ा दिया है। दिल्ली में 10 अक्टूबर को राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय सम्मेलन में इस कदम पर आधिकारिक मुहर भी लग चुकी है। सम्मेलन में राजद सुप्रीमो के हनुमान कहे जाने वाले भोला यादव ने राजद के संविधान संशोधन का प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव के अनुसार राजद के नाम या इसके चुनाव चिह्न लालटेन से संबंधित मामले में अंतिम निर्णय राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद या तेजस्वी यादव का ही होगा। ऐसे में राजद के कदम बढ़ाने के बाद अब जदयू को फैसला लेना है।

क्या होगा नई पार्टी का स्ट्रक्चर : सूत्रों की मानें तो नई पार्टी का स्ट्रक्चर काफी संतुलित बनाने की कोशिश की जा रही है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर नीतीश कुमार को ही आगे किया जाएगा। वहीं बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर तेजस्वी यादव आगे रहेंगे। मुख्यमंत्री नीतिश कुमार इस नई पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे तो उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के नेता के तौर पर उभारने की पूरी कोशिश की जाएगी। नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी के बराबर तैयार किया जाएगा। बताया जा रहा है कि जिस तरह की स्थितियां बनेंगी, उसके मुताबिक कुछ बदलाव भी किए जाएंगे।

29 साल पहले राहें अलग हुई थीं : गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने 1994 में जनता दल से अलग होकर समता पार्टी बना ली थी। नीतीश ये जानते थे कि वे लालू यादव के साथ राज्य के नेतृत्व की सीढ़ी की ओर नहीं देख सकते थे। हालांकि, उम्र में वह लालू यादव से महज तीन साल ही छोटे थे।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की राजनीति एक ही तरह की रही है। दोनों पिछड़ों के नेता हैं और पिछड़ों के नाम पर यह लोगों को एकजुट करेंगे। भले यह कहें कि समाजवाद और मंडल कमीशन वाले नेता एक साथ मिल रहे हैं लेकिन, असल बात यह है कि जो हाल के सालों में पिछड़कर बिखर गए थे, ये दोनों अब उन्हें एकजुट करेंगे। बहरहाल, जदयू और राजद का आने वाले दिनों में विलय निश्चित है। इस विलय के बाद भले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार न रहें और मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव बन जाएं, लेकिन लीडरशिप नीतीश कुमार के हाथ में ही रहेगी; जिसे तेजस्वी यादव भी स्वीकार करेंगे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सब कुछ सोच समझकर गठबंधन किया है। आने वाले समय में नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को टक्कर देने के लिए अपने आप को मजबूत करेंगे और तेजस्वी यादव बिहार में भाजपा से लोहा लेंगे। रही बात नीतीश कुमार के पावर की तो नीतीश कुमार बिहार की सत्ता भले तेजस्वी यादव को दे दें, लेकिन राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदनों में से किसी एक के सदस्य बनकर वह भाजपा के सामने खड़े रहेंगे और भाजपा को नीतीश कुमार से परेशानी भी होगी।

भाजपा बोली- विलय के बाद नीतीश समाप्त हो जाएंगे : इस विलय के बीच बिहार विधान परिषद के प्रतिपक्ष नेता सम्राट चौधरी ने कहा कि जैसे ही यह विलय होगा, नीतीश कुमार समाप्त हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार अप्रासंगिक हो चुके हैं और जैसे ही दोनों दलों का विलय होगा, वह समाप्त भी हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि जिस तरह से 30% माई समीकरण का वोट लेकर लालू प्रसाद यादव पिछले 31 सालों से अपनी राजनीति कर रहे हैं, नीतीश कुमार उसमें समा जाएंगे। अब बिहार की जनता समझ चुकी है कि यह दोनों नेता मिलकर बिहार की जनता को धोखा दे रहे हैं।

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