सीट फॉर्मूले पर क्षेत्रीय पार्टियां फंसाएंगी पेंच

जनपथ न्यूज़ डेस्क
आलेखाकार: गौतम सुमन गर्जना/भागलपुर
29 अप्रैल 2023

आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने की मुहिम चला रहे हैं। यह मुहिम तभी तक सफल दिख रही है, जब तक चुनाव की घोषणा नहीं हो जाती। दरअसल, सीएम नीतीश कुमार की इस मुहिम में वही क्षेत्रीय दल सबसे बड़े बाधक होंगे,जिन्होंने अपने बलबूते अपना क्षेत्र तैयार किया है। वह राजनैतिक तैयार की गई जमीन को आसानी से नहीं छोड़ेंगे।
गौरतलब है कि हाल के दिनों में सीएम नीतीश कुमार ने 12 और 13 अप्रैल को कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के प्रमुख नेताओं से मुलाकात की थी। इस दौरान दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी,सीपीआई (एम) महासचिव सीताराम येचुरी और सीपीआई नेता डी. राजा सहित लेफ्ट के अन्य नेताओं से मुलाकात हुई थी।
24 अप्रैल को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ भी उन्होंने मुलाकात की हैं। इन सभी दलों के प्रमुख नेताओं ने बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ने की हामी तो भरी हैं, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व के मसले पर किसी ने खुलकर कुछ नहीं कहा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उन नेताओं की ओर से यह कहते नजर आ रहे हैं कि फिलहाल एकजुट होकर चुनाव लड़ने की तैयारी की जा रही है। नेता कौन होगा, उसे सर्वसम्मति से चुन लिया जाएगा। जानिए किस तरह से किन-किन राज्यों में कांग्रेस के लिए क्षेत्रीय दल परेशानी खड़ा कर सकते हैं…

*पीएम उम्मीदवारी पर फंस सकता है पेंच*

2024 के चुनावी दस्तक से पूर्व कुछ सवाल होंगे,जिसका जवाब विपक्षी एकता के प्रमुख नेताओं को देना होगा। जैसे पहला, कांग्रेस को क्षेत्रीय दल स्वीकार होगा या नहीं? दूसरा, ममता बनर्जी,अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, नवीन पटनायक,क्या कांग्रेस के साथ विपक्षी एकता के लिए सहमत होंगे? तीसरा, प्रधानमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा?
वहीं, विपक्षी एकता पर बीजेपी लगातार कहती रही है कि नेता कौन होगा? यह पहले विपक्षी पार्टियां तय करें। अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, राहुल गांधी सहित वाम दलों के नेताओं ने नीतीश कुमार के इस पहल की सराहना की हैं, लेकिन अभी तक क्षेत्रीय दलों की ओर से कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकार करने की बात सामने नहीं आई है।

*उत्तर भारत में नीतीश की क्षेत्रिय दलों को एकजुट करने की कोशिश*

नीतीश कुमार की पिछले दिनों कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के साथ बैठक हुई थी। इस मीटिंग के बाद महागठबंधन के एक नेता ने बताया कि कुछ फॉर्मूले पर बातचीत हुई है, जिसपर आगे भी चर्चा होगी। महागठबंधन के नेता ने बताया कि दक्षिण भारत में कांग्रेस की स्थिति बेहतर है, जिससे दक्षिण भारत के क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने की जिम्मेदारी कांग्रेस को दी गई है। दक्षिण भारत के राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल बेहतर कर वहां कांग्रेस अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ सके।दूसरी तरफ जदयू-राजद को उत्तर भारत की जिम्मेदारी दी गई है। उत्तर भारत में आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, जेएमएम जैसे दलों को एकजुट करने की जिम्मेदारी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को दी गई है। क्षेत्रीय दलों में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह जिम्मेदारी खुद ली है।

*विपक्षी एकजुटता के लिए नीतीश पहले भी कर चुके हैं कोशिश नहीं मिली सफलता*

ऐसे मैं गौतम सुमन गर्जना देश के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली व बिहार की राजनीति को बेहतर तरीके से समझ रहा हूं। इसलिये मेरा मानना है कि नीतीश कुमार कोशिश कर रहे हैं। एकजुटता की यह सेकेंड राउंड है। पहली बार भी उन्होंने कोशिश की थी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी। इस बार वे काफी उत्साहित हैं। उन्हें लग रहा है कि सफलता मिलेगी। इस मुद्दे पर मेरा कहना है कि किसके नेतृत्व में एकजुट होंगे और बीजेपी के खिलाफ चेहरा कौन होगा.. इस एकजूट होने के खेल में यह समस्या जरुर आएगी। क्योंकि यूं तो कहने को सभी एक साथ हैं, लेकिन केजरीवाल की अलग महत्वकांक्षा है और ममता बनर्जी की अलग समस्या है। देखा जाए तो अखिलेश यादव भी इस पर तैयार नहीं होंगे।
इसलिये मेरा मानना है कि विपक्षी एकता को मजबूत करने की मुहिम की यह महज शुरुआत मात्र है। बिना एकजुट हुए बीजेपी से टक्कर लेना संभव भी नहीं है। हालांकि, नीतीश की मुहिम से बीजेपी के लोग खुश हैं,क्योंकि उसे मालूम है कि सबकी अपनी-अपनी अलग-अलग महत्वाकांक्षाएं है। इससे एकजुटता संभव नहीं है। बहरहाल,विपक्षी एकता कितना सफल होगा, यह आने वाला वक्त बताएगा।
इधर, जो फार्मूला तैयार किया जा रहा है, उसमें नीतीश कुमार भाजपा के खिलाफ वैचारिक एकजुटता को तैयार कर रहे हैं। नीतीश कुमार के मुताबिक कई मुद्दे हैं, जिस पर सभी विपक्षी दलों की राय एक है। इन्हीं मुद्दों के सहारे नीतीश कुमार विपक्षी दलों को एकजुट करेंगे। विपक्षी नेतृत्व के सवाल पर नीतीश कुमार पहले कह चुके है कि जब विपक्षी एकता बन जाए तो सभी दलों का सम्मान होना चाहिए ।

*सीटों के बंटवारे पर भी कई राज्यों में पेंच फंस सकता है*

सीटों के बंटवारे में कई राज्यों में पेंच फंसता दिख रहा है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और यूपी में समाजवादी पार्टी कभी भी अपने से ज्यादा सीट कांग्रेस को नहीं दे सकती है। यही पेंच फंसने वाला है। दिल्ली की यदि बात करें तो यहां अरविंद केजरीवाल 7 सीटों में एक या दो सीटों पर मैनेज कर सकते हैं, लेकिन कभी भी अपने से ज्यादा सीट कांग्रेस को नहीं दे सकते है।
वहीं बिहार में कांग्रेस को कुछ सीटें मिल सकती हैं। इसके बावजूद कांग्रेस को राजद और जदयू से ज्यादा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ाया जा सकता है। इस स्थिति में उत्तर भारत में कांग्रेस की स्थिति काफी कमजोर होती दिख रही है। ऐसे में विपक्षी एकता को पहला झटका यहीं पर लगेगा।

*सभी विपक्ष पार्टियों की विचारधारा अलग, एक ही धारा में बहने का प्रयास मुश्किल*

मेरा मानना है कि मौजूदा समय में जो विपक्षी एकता की बात हो रही है, उसके भूतकाल में जाने की जरूरत है। एक समय कांग्रेस और सपा के साथ गठबंधन हुआ था। काफी जोर-शोर से चर्चा हुई थी और लगा पूरी राजनीति बदल जाएगी, लेकिन उसका क्या परिणाम हुआ? यह हम सब जानते है। आज जिस विपक्षी एकता की बात हो रही है। उसमें लीडर के रूप में ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, तेजस्वी यादव हैं।
ये नेता एक मंच पर यह संदेश देने की कोशिश कर रहे है कि हम एक हो रहे हैं। हम एक साथ मिलकर विपक्षी एकता को मजबूत करेंगे। तब हम बीजेपी से लड़ेंगे, लेकिन यह जो स्थिति बनाने का प्रयास हो रहा है। उसमें नेताओं की अपनी-अपनी विचारधारा है, जिसे एक धारा में बहाने का प्रयास मुश्किल है। फोटो फ्रेम में सब मिल रहे हैं, लेकिन अपने फायदा और नुकसान से कभी ऊपर नहीं हो सकते हैं।

*पिछले आम चुनाव में भी विपक्ष के सारे दांव हुए थे फेल*

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी 2019 लोकसभा चुनाव मिलकर लड़े थे, लेकिन बीजेपी के सामने विपक्षी दलों के सारे दांव पेच फेल हो गए थे। बीजेपी 78 सीटों पर चुनाव लड़ी और 62 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, बीजेपी की सहयोगी अपना दल एस को दो सीटों पर जीत हासिल हुई। सपा और बसपा साथ चुनाव लड़े।बसपा को 10 सीटें और सपा को सिर्फ पांच सीटों पर संतोष करना पड़ा था। कांग्रेस को तो प्रदेश में तगड़ा झटका लगा था। बीजेपी ने राहुल गांधी की पारंपरिक सीट अमेठी को भी छीन लिया। कांग्रेस एक सीट रायबरेली पर ही जीत दर्ज कर सकी थी।
2019 लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल के 42 लोकसभा सीटों में से ममता बनर्जी को 22 सीटों पर जीत दर्ज की थी। बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए 18 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटों पर संतोष करनी पड़ी थी। हालांकि, ममता बनर्जी ने 2014 लोकसभा चुनाव में 34 सीटों पर जीत हासिल की थी।
इधर, बिहार की बात करें तो 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी, जदयू और लोजपा का गठबंधन था। 40 सीटों में तीनों पार्टियां 39 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को एक सीट ही मिली थी और राजद शून्य पर आउट हो गया था। हालांकि इस बार परिस्थितियां अलग है। ऐसे में यहां सीटों का समीकरण अलग होने वाला है।

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