जब इंसान अपने रोजगार से विमुख हो जाता है , ऑर उसकी आमदनी बाधित हो जाती हैं तो उसकी आवश्यकता की पूर्ति में कमी हो जाती हैं।
चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं इसलिए वह अपने कार्यस्थल पर भी समाज बना लेता हैं जहां उसकी इह की पूर्ति होती हैं। प्रसन्नता से वह अपने कर्मों का निर्वहन करता हैं।
परन्तु इसके विपरित परिस्थितियों ने इस महामारी में जन्म लें लिया हैं। इस महामारी में लोगों के आमदनी कम होने के वजह से लोगों की जिंदगी तनाव से गुजर रही हैं।महिलाये हिंसा की शिकार हो रहीं हैं। महिला ऑर पुरुषों के बीच सामंजस्य सही नहीं बन पा रहा हैं।
घरेलू हिंसा का ग्राफ बढ़ा है। बलात्कार की संख्या भी बढ़ी हैं। तनाव भरी जिंदगी के कारण महिलाओं का मानसिक और शारीरिक शोषण बढ़ा है।
चूंकि महिलाएं पुरुषों पर निर्भर हैं ऑर इस लॉकडाउन में परिवार की आमदनी बंद हैं । बच्चों की पढ़ाई भी ठप हैं।
हालांकि बहुत सी महिलाएं अवैतनिक काम करती हैं फिर भी घर का सारा कार्य महिलाओं के जिम्मे रहता हैं।
पुरुष घर से लॉकडाउन के वजह से नहीं निकलते हैं तो अवसाद में रहने को मजबुर हो जाते हैं। महिलाओं के इच्छा के विरूद्ध यौन शोषण हो रहा हैं। किसी- किसी अव्यवस्थित परिवार में चरम सुख हेतु महिलाओं को केवल मनोरंजन के नजरों से देखा जाता हैं ।काम ना करने ऑर आमदनी नहीं होने के वजह से युवा भी भटक गया हैं।कुछ जगहों पर व्यभिचार बढ़ गया हैं ।दरभंगा में अवयस्क लड़की का सामूहिक बलात्कार होना या किशनगंज में भी उसी दिन बलात्कार का होना ये दर्शाता हैं कि बिहार में महिलाओं के विरूद्ध होने वाले घरेलू हिंसा में उतरोतर बढ़ोतरी हुई हैं ।
बिहार सरकार को चाहिए कि महिलाओं के विरूद्ध घरेलू हिंसाओं में कमी के लिए प्रयाप्त कदम उठाएं। काउंसलिंग की व्यवस्था हो।उनको रोजगारपरक प्रशिक्षण देकर उनको आत्मनिर्भर बनाया जाय। महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिया जाए। सुदूर गांवों में महिला चिकित्सक की बहाली हों । महिला ऑर पुरुषों को जागरूक किया जाए।
सरकार किसी भी योजना का सब्सिडी या कोई भी लाभ परिवार के महिला के नाम से करे ऑर राशि सीधे उनके खाते में भेजे।
मैं मंजुबाला पाठक , बिहार प्रदेश महिला कांग्रेस पूर्व उपाध्यक्ष ये बिहार सरकार से मांग करती हूं कि महिलाओं के विरूद्ध होनेवाले घरेलू हिंसा का रोकथाम करे ऑर जो कोई भी दोषी पाया जाए उनको दंडित किया जाए।