श्रम कानूनों में सुधार की जोरदार वकालत करते हुए अखिल भारतीय प्रधान संगठन के राष्ट्रीय संयोजक एवं देश के जाने माने राजनीति रणनीतिकार, कई राज्यो के मंत्री, वीवीआईपी हस्तियों के सलाहकार कृष्ण कुमार झा ने इसे वक्त की जरूरत बताया है। उन्होंने कहा कि पिछले डेढ़ महीने से जारी लगातार लॉकडाउन का हमारी अर्थव्यवस्था पर बेहद पर बुरा असर पड़ा है, इसमें कोई संदेह नहीं। ऊपर से अन्य राज्यों से पलायन कर अपने गृहराज्य वापस आने वाले मजदूरों की वजह से राज्यों पर आर्थिक बोझ और अधिक बढ़ता जा रहा है।
कृष्ण कुमार ने कहा कि अखिल भारतीय प्रधान संगठन का कार्यक्षेत्र गांव व ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण मजदूरों की वापसी और उससे राज्य पर बढ़ते आर्थिक बोझ से हम भलीभांति वाकिफ हैं। विभिन्न राज्यों से अपने गृहराज्य लौटे ये मजदूर अब किसी भी कीमत पर पुनः रोजगार के लिए अन्य राज्यों में जाने के पक्षधर नहीं हैं। ऐसे में पुराने व अतार्किक श्रम कानूनों की जंजीर में जकड़ी किसी भी राज्य सरकार के लिए इतने बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन करना बहुत बड़ी चुनौती है। इसको दृष्टिगत रखते हुए उन्होंने राज्य सरकारों को पत्र लिखकर श्रम सुधारों में बदलाव करने की मांग की है ताकि उद्यमी बेझिझक उद्यम स्थापित कर सकें।
उन्होंने यूपी की योगी सरकार को हल ही में पत्र लिखकर जो सुझाव दिए तथा योगी सरकार द्वारा अध्यादेश जारी कर अपनी उपयोगिता खो चुके राज्य में लागू 40 श्रम कानूनों में से 32 को तीन साल के लिए निलंबित कर नये निवेश व उद्योगों की स्थापना की राह खोलने का स्वागत किया। जिन 8 कानूनों को बरकरार रखा गया है उनमें 1976 का बंधुआ मजदूर अधिनियम, 1923 का कर्मचारी मुआवजा अधिनियम और 1966 का अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम के अलावा महिलाओं और बच्चों से संबंधित कानूनों के प्रावधान जैसे कि मातृत्व अधिनियम, समान पारिश्रमिक अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम शामिल हैं। इसके साथ ही मजदूरी भुगतान अधिनियम की धारा 5 को बरकरार रखा गया है, जिसके तहत प्रति माह 15,000 रुपये से कम आय वाले व्यक्ति के वेतन में कटौती नहीं की जा सकती है।
झा ने कहा कि उत्तर प्रदेश द्वारा औद्योगिक इकाइयों, प्रतिष्ठानों और कारखानों को तीन साल के लिए श्रम कानूनों में छूट देने का यह कदम इस अर्थ में क्रांतिकारी है कि इसके कारण नये निवेश को बढ़ावा मिलेगा, लोगों को अपने ही राज्य में रोजगार मिलेगा जिससे पलायन पर प्रभावी रोक लगेगा और राज्य को वर्तमान कोरोना संकट से उबारने में प्रत्यक्ष सहयोग मिलेगा। उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश व गुजरात ने भी श्रम कानूनों में ढील देने का फैसला किया है। श्रम कानूनों की जकड़न ने न केवल पुराने उद्योग धंधों को बंद कराने व उन्हें अन्य देशों मसलन बांग्ला देश, मलेशिया आदि राज्यों की ओर पलायन करने को विवश किया बल्कि नये उद्योगों की स्थापना में भी सबसे बड़ी बाधा है।
कृष्ण कुमार ने कहा कि किसी भी सरकार के लिए प्रशासनिक व्यवस्था को बनाये रखने के लिए राजस्व प्राणवायु है और यह राजस्व आता है विभिन्न प्रकार की आर्थिक गतिविधियों के संचालन से। राज्य में नये निवेश आयें, नये उद्योग धंधें लगें, पुराने चल रहे उद्योग धंधों को भी राहत मिले जिससे नये नये रोजगार पैदा हों इसके लिए जरूरी है कि पुराने श्रम कानूनों में बदलाव हो। पिछले तीन दशकों में भारतीय उद्योगों को विश्व भर में स्पर्धात्मक बनाने के उद्देश्य से वित्तीय क्षेत्र, मुद्रा-बैंकिंग व्यवसाय,वाणिज्य, विनिमय दर और विदेशी निवेश के क्षेत्र में नीतिगत बदलाव किए गए हैं। कोरोना की वजह से मजदूरों का अपने अपने राज्यों में वापसी की परिस्थिति में अब श्रम कानूनों में बदलाव भी जरूरी हो गया है ताकि उद्योग धंधों को प्रोत्साहन मिले जिससे लोगों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मिले।
श्रम कानूनों को लचीला बनाने के संदर्भ में चीन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उसने परिस्थिति व समय के अनुरूप अपने श्रम कानूनों में बदलाव कर अत्यधिक उदार व लचीला बनाया और आर्थिक क्रांति करने में सफल रहा। आज पूरा विश्व चीन निर्मित सामानों से अटा पड़ा है। कोरोना से उपजे आर्थिक संकट से उबरने के लिए साहसिक फैसला लेने जरूरी है। अब श्रम सुधार के बिना विकास दर की बात बहुत आगे बढ़ने वाली नहीं है। श्रम कानूनों की भरमार कम करनी होगी और ऐसी नीतियां बनानी होंगी, जिनसे उत्पादन बढ़े और उपयुक्त सुरक्षा ढांचे के साथ श्रमिकों का भी भला हो और उन्हें पुनः दूसरे राज्यों की ओर पलायन के लिए विवश न होना पड़े।