केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि 1 से 27 मई के बीच ट्रेनों और बसों से प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह राज्य/नगर पहुंचाया गया। अदालत ने श्रमिकों को सहूलियत से ले जाने और यात्रा के दौरान उनके खाने पीने की व्यवस्था के लिए राष्ट्रव्यापी योजना बनाने का आदेश दिया है। क्योंकि कोर्ट को मजदूरों की चिंता है।
मेरा मानना है कि बिहार पिछड़ा राज्य है यहां से श्रमिक औद्यौगिक राज्यों में जाते है।
बिहार में कृषि व्यावसायिक नजरिए से नहीं होती, ऑर कृषि के उत्तम तरीकों से नहीं होती। तकनीकी और निवेश की कमी हैं। यहां मजदूरों के आने से कृषि पर निर्भरता अधिक बढ़ेगी । अब केंद्र पुनः उत्पादकता बढ़ाने के लिए बिहार के मजदूरों को औद्यौगिक राज्यों में बुलाने को कहेगा जिसमें मेरा मानना है कि सन 1979 के प्रवासी मजदूर कानून को और मजबूत बनाकर गृह राज्यों से जाने वाले मजदूरों यथा बिहार से जानेवाले मजदूरों का पंजीकरण होना चाहिए और उनके प्रवास की ट्रैकिंग भी की जानी चहिए।
सन् 2008 में यूपीए -2 सरकार में हमारे मजदूरों के लिए बने एक कानून के तहत ‘अनॉर्गनिज्ड वर्कर्स आइडेंटीफिकेशन’ नंबर , युविन के तहत उनकी न्यूनतम वेतन सुनिश्चित की जाए।
मैं मांग करती हूं कि हमारे बिहारी मजूदरों को ‘ई एस आई ‘, स्वास्थ्य बीमा सुविधा भी देनी चाहिए। अगर इनका पंजीकरण होता हैं तो इनका शोषण नहीं होगा, इनको आसानी से नौकरी से नहीं निकाला जाएगा । ठेकेदार इनका शोषण नहीं करेंगे।
हमारे संकल्प की ऊर्जा मजदूर ही है। मजदूरों के दिल को जितना होगा तभी उनका श्रम हमारे राज्य ऑर देश के चहुमुखी विकास के काम आएगा। हमें हमेशा याद रखना होगा कि हमारे देश ऑर राज्य का विकास मजदूर ही कर सकते इसलिए इनका विकास आवश्यक हैं। सर्वप्रथम इनका पुनर्वास जरूरी है। हम बिहार सरकार से निवेदन करते है कि हमारे मजदूरों की सुध ले और इनके भविष्य को उज्ज्वल और सुरक्षित बनाने का कार्य करें।

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