जनसंचार, समाज और वैश्वीकरण पर मीडिया संगोष्ठी।
गाजियाबाद, (आनन्द चौधरी)
जनपथ न्यूज़ :- राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद(उ प्र) स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (ITS) व इंटरनेशनल चैम्बर ऑफ़ प्रोफेशनल एजुकेशन एंड इंडस्ट्रीज (ICPEI) द्वारा मीडिया संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका विषय था, “जनसंचार, समाज और वैश्विकरण। चटपटी खबरें व ब्रेकिंग न्यूज़ के युग में मीडिया का भरोसा बहाल करना। जिनमे मीडिया की संस्कृति, लोकतंत्र, मनोरंजन व बाज़ारवाद जैसे विषय भी शामिल थे। आई
टी एस, उत्तर भारत का एक बेहतरीन उच्च शिक्षण संस्थान है जिसकी स्थापना वर्ष 1995 में की गयी थी।
कार्यक्रम के उदघाटन सत्र में आई टी एस के उपाध्यक्ष अर्पित चड्ढ़ा, निदेशक-प्रबंधन अजय कुमार, निदेशक – जनसंपर्क सुरेंद्र सूद, न्यूज़पेपर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के विपिन गौड़, जाने-माने कवि व आकाशवाणी से सेवानिविर्त लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, व प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के सुनील डांग शामिल थे।
उदघाटन सत्र को संबोधित करते हुए सुनील डांग ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि “जो प्रभाव पहले पत्रकारिता का होता था, अब फेक न्यूज़ का होने लगा है? वहीँ समारोह में मौजूद पत्रकारिता के छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “आपकी खबर अगर लोगों तक न पहुंचे तो वो बेकार है? अपने संबोधन में विपिन गौड़ ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि “हमने सच और झूठ में फर्क समझना छोड़ दिया है।
इस पूरी चर्चा को दो हिस्सों में बांटते हुए, पहले हिस्से में “लोकसंपर्क, जिम्मेदारी और जबाबदेही’ पर चर्चा करने वाले सदस्यों में आजतक के आशीष कुमार सिंह, सहारा समय की एंकर प्रिया राय, एफ एम रेम्बो की उदघोषिका आरती मल्होत्रा, द हिन्दू बिज़नेस लाइन के शिशिर सिन्हा, व वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह शामिल थे। प्रथम सत्र में चर्चा का संचालन लक्ष्मी शंकर बाजपेई ने किया।
जिम्मेदारी और जबाबदेही पर चर्चा के दौरान फेक न्यूज़ का मुद्दा छाया रहा। आई टी एस के छात्रों को संबोधित करते हुए प्रिया राज ने सीख दी कि “फ़र्ज़ निभाइये, फर्ज़ी नहीं..? वहीँ आरती मल्होत्रा ने कहा कि “हमेशा सिखने की प्रक्रिया चालू रहना चाहिए। जिससे जितना हो सके सीखने की कोशिश करें। आशीष कुमार सिंह के अनुसार “किसी भी पत्रकार के लिए सबसे जरुरी ये है कि वो अपने पेशे के प्रति समर्पित रहे। आपकी विचारधारा अलग हो सकती है लेकिन पेशेवर प्रतिबद्धता नहीं? सच बोलने या लिखने के लिए ये जानना भी बहुत जरुरी है कि सच क्या है। वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह ने मीडिया के छात्रों को 3जे का मन्त्र दिया। जिद, जूनून और जज्बा। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को भयभीत नहीं होना चाहिए। शिशिर सिन्हा ने कहा कि “हमारे लिए ब्रेकिंग न्यूज़ की परिभाषा बदल गई है। बहुत सी खबरें ऐसी होती है जिसका कोई आधार नहीं होता।
दूसरे सत्र में “मीडिया और वैश्विकरण” पर चर्चा करने वाले वक्ताओं में इंडिया न्यूज़ के अजय शुक्ला, एफ ऍम न्यूज़ के राशिद हाशमी, फिल्म निर्माता व नेटवर्क 18 के पूर्व संपादक धीरज सार्थक, लेखक-संपादक सुश्री बरखा वर्षा, प्रोफ़ेसर अल्बीना अब्बास, वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव व लेखक-स्तंभकार प्रियंक दुबे शामिल थे।
इस सत्र की चर्चा में भी फेक न्यूज़ का मुद्दा छाया रहा। सत्र का संचालन करते हुए प्रोफ़ेसर अल्बीना अब्बास ने अपने संबोधन में फेंक न्यूज़ पर चर्चा करते हुए कहा कि “गलत सुचना फेक न्यूज़ का सबसे बड़ा आधार है। और फेक न्यूज़ से बचने का सबसे आसान तरीका है मीडिया की जानकारी ताकि सही और गलत में फर्क को समझा जा सके। उन्होंने कहा कि आज की तारीख में भारतीय मीडिया को जिम्मेदार बनना पड़ेगा। बरखा वर्षा के अनुसार फेक न्यूज़ से समाज में खंडन पैदा होता है। उन्होंने सलाह दी कि फेक न्यूज़ जिसका सोशल मीडिया पर आदान-प्रदान होता है, उससे बचना चाहिए।
प्रियंक दुबे ने अपने संबोधन में मीडिया के लिए एक अच्छी रेगुलरिटी बॉडी की जरुरत पर बल दिया और कहा कि मीडिया को व्यवसाय की तरह न देखा जाये। उन्होंने कहा कि बाजारवाद ने तथ्यों और खबरों को पीछे छोड़ दिया है। हमारे पास खबर और तथ्यों की कोई कमी नहीं है, हमने उसे देखने-परखने का नजरिया बदल दिया है।
राशिद हाशमी के अनुसार मीडिया व्यवसाय है इसलिए खबरों को बेचना भी पड़ता है। हर चीज नकारात्मक लहजे में नहीं देखना चाहिए, कुछ सकारात्मक भी होना चाहिए? बाज़ारवाद ने हमें बहुत कुछ दिया भी है और वैश्विकरण ने हमें सच और झूठ को परखने की क्षमता दी है। धीरज सार्थक के अनुसार “हम एक प्रोडक्ट बन चुके हैं। जो दिखता है, वैसा होता नहीं है? उनके अनुसार आज़ाद भारत में न्यूज़ चैनल गुलामी के दौर से गुजर रहा है। न्यूज़ रूम में मार्केटिंग वाले जो चाहते हैं, वही होता है। उन्होंने पी साईनाथ का हवाला देते हुए कहा कि “मीडिया, कॉर्पोरेट सेक्टर का आर्म्स बन चूका है।” उन्होंने कहा कि आसान का मतलब सस्ता होना नहीं है। बाजार और खबर के बीच एक बीच का रास्ता होना चाहिए। बातें शालीनता और गंभीरता से भी कही जा सकती है। उनके अनुसार आप किसी खबर को खारिज़ करना शुरू करेंगे, चीजें अपने-आप सुधरने लगेगी। इसलिए बदलाव की कोशिश में हमेशा लगे रहना चाहिए।
अजय शुक्ला ने सवाल किया कि अगर मीडिया इंडस्ट्री है तो क्या बुरा है? इंडस्ट्री में हर चीज गलत नहीं होता। हमें ये देखना चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत? उनके अनुसार सच और झूठ को परखने का फायदा वैश्विकरण से हुआ है। आप अपने आप को बेहतर कीजिये। सकारात्मक सोच के साथ जो भी करना चाहेंगे, चीजें आसान होने लगेगी। आप दर्द बेचिये… वो दर्द सरकार को भी होगा और उस दर्द को समाज भी समझेगा।
कुल मिलाकर इस पुरे संगोष्ठी का सारांश यह रहा कि बाज़ारवाद और वैश्विकरण से जहाँ मीडिया मालिकों को फायदा हुआ वहीं पत्रकारिता को नुकसान। अतः हमें जरुरत है कि इनके बीच एक ऐसा रास्ता निकले जिससे कि मीडिया संस्थान भी बचे रहें और पत्रकारिता भी।

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